Paush Putrada Ekadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है. पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतानहीन व्यक्तियों को पुत्र की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि, इस एकादशी का व्रत करने से जहां एक तरफ संतान हीन व्यक्तियों को पुत्र की प्राप्ति होती है वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों की संतान होती है उनके बच्चे तपस्वी, विद्वान, और धनवान बनते हैं. पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ और मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि एकादशी के दिन श्रीहरि से जुड़ी कथा जरूर पढ़नी चाहिए.
पौष पुत्रदा एकादशी की कथा
पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था. पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा रहता था, जिसकी पत्नी का नाम शैव्या था. राजा-रानी की कोई संतान नहीं थी, जिसको लेकर वह सदैव चिंतित रहते थे. उन्हें हमेशा इस बात की चिंता सताती थी कि उसके बाद उनका राजपाट कौन संभालेगा और मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार, श्राद्ध, पिंडदान आदि कर्म कौन करेगा और कौन उन्हें मुक्ति दिलाएगा और कौन उसके पितरों को तृप्त करेगा? बस यही सब सोच कर राजा की बीमारी होने लगे.
एक बार राजा जंगल भ्रमण करने निकला और वहां जाकर प्रकृति की सुंदरता को देखने लगा, वहां उसने देखा कि कैसे हिरण, मोर व अन्य पशु पक्षी भी अपनी पत्नी व बच्चों के साथ जिंदगी का आनंद ले रहे हैं. यह देखकर वह और अत्यधिक विचलित होने लगा. वह सोचने लगा कि इतने पुण्यकर्मों के बाद भी मैं निःसंतान हूं. तभी राजा को प्यास लगी और वह जल की तलाश में इधर उधर भटकने लगा, भटकते-भटकते उसकी नजर एक नदी के किनारे बने ऋषि-मुनियों के आश्रम पर पड़ी. श्रद्धावान होने के कारण राजा ने वहां जाकर सभी ऋषियों को दंडवत प्रणाम किया. राजा का सरल स्वभाव देख सभी ऋषि उससे अत्यधिक प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा. जिसपर राजा ने उत्तर दिया, “हे देव! भगवान और आप संत महात्माओं की कृपा से मेरे पास सब कुछ है, केवल कोई संतान नहीं है, जिसके कारण मेरा जीवन व्यर्थ है.”
यह सुन ऋषि बोले, “राजन! भगवान ने ही आज तुन पर विशेष कृपा करके तुम्हें यहां भेजा है. आज पुत्रदा एकादशी है और आप पूरी निष्ठा से इस एकादशी का व्रत करें. ऐसा करने से आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. ऋषि की यह बात सुनकर राजा ने उस व्रत का पालन किया और नियम के अनुसार द्वादशी के दिन व्रत पारण किया. इसके कुछ दिनों बात रानी गर्भवती हुईं और उन्हें एक तेजस्वी और यशस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई और अंत में राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई. इस प्रकार से इस व्रत का महत्व कई गुना बढ़ गया.
पौष पुत्रदा एकादशी पूजन विधि
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान का ध्यान करें. गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत में व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए. यदि व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं. व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए.