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Rangbhari Ekadashi 2025: रंगभरी एकादशी पर पढ़ें ये खास कथा, श्रीहरि करेंगे हर मनोकामना पूरी

Rangbhari Ekadashi 2025: माना जाता है कि रंगभरी एकादशी आंवले के पेड़ की उत्पत्ति से संबंधित है. मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही, भक्त पिछले जन्मों के पापों से भी मुक्ति पा लेता है. इस दिन आंवले के पौधे को लगाने व दान करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

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रंगभरी एकादशी 2025
रंगभरी एकादशी 2025

Rangbhari Ekadashi 2025: कल रंगभरी एकादशी मनाई जाएगी. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. रंगभरी एकादशी को आमलकी व आंवला एकादशी के नाम से जाना जाता है. रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की उपासना की जाती है. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. वहीं, रंगभरी एकादशी के दिन श्रीहरि की कथा सुनना भी विशेष फलदायी माना जाता है. 

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रंगभरी एकादशी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, वैदिश नाम का एक नगर था और उस नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र रहते थे. वहां रहने वाले सभी लोग भगवान विष्णु के भक्त थे और सब उनकी पूजा में लीन रहते थे. वैदिश नगर के राजा चैतरथ थे और वे बहुत अधिक विद्वान व धार्मिक थे. उनके नगर में कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं था. नगर में रहने वाला हर शख्स साल में पड़ने वाली सभी एकादशी का व्रत करता था. एक बार फाल्गुन महीने में आमलकी एकादशी आई. सभी नगरवासी और राजा ने यह व्रत किया और मंदिर जाकर आंवले की पूजा की और वहीं पर पूरी रात जागरण किया. तभी उस रात एक बहेलिया वहां पहुंचा जो बहुत ही पापी था और वह बहुत अधिक भूखा व प्यासा था. भूख की तलाश में वह मंदिर पहुंचा और मंदिर के कोने में बैठकर जागरण को देखने लगा. साथ ही, सबके साथ विष्णु भगवान व एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा. इस तरह पूरी रात बीत गई. नगर वासियों के साथ बहेलिया भी पूरी रात जागा रहा. सुबह होने पर सभी नगरवासी अपने घर चले गए. बहेलिया ने भी घर जाकर भोजन किया. लेकिन कुछ समय के बाद बहेलिया की मौत हो गई.

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हालांकि उसने आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, जिसके चलते उसका अगला जन्म राजा विदूरथ के घर हुआ. राजा ने उसका नाम वसुरथ रखा. बड़ा होकर वह नगर का राजा बना. एक दिन वह शिकार पर निकला, लेकिन बीच में ही रास्ता भूल गया. रास्ता भूल जाने के कारण वह एक पेड़ के नीचे सो गया. थोड़ी देर बाद वहीं म्लेच्छ आ गए और राजा को अकेला देखकर उसे मारने की योजना बनाने लगे. उन्होंने कहा कि इसी राजा के कारण उन्हें देश निकाला दिया गया. इसलिए इसे हमें मार देना चाहिए. इस बात से अनजान राजा सोता रहा. म्लेच्छों ने राजा पर हथियार फेंकना शुरू कर दिया. लेकिन उनके शस्त्र राजा पर फूल बनकर गिरने लगे.

कुछ देर के बाद सभी म्लेच्छ जमीन पर मृत पड़े थे. वही जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हैं. राजा समझ गया कि वह सभी उसे मारने के लिए आए थे, लेकिन किसी ने उन्हें ही मौत के घाट उतार दिया. यह देखकर राजा ने सोचा कि जंगल में आखिर कौन उसकी जान बचा सकता है. तभी आकाशवाणी हुई कि ‘हे राजन भगवान विष्णु ने तुम्हारी जान बचाई है. तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुना था और उसी का फल है कि आज तुम्हारे शत्रु तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाए. इसके बाद राजा ने विधि-विधान से एकादशी का व्रत करना शुरू किया. 

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रंगभरी एकादशी पूजन विधि

रंगभरी एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें. इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें और फिर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें. इसके लिए भगवान विष्णु को पीला फूल, माला, पीला चंदन, भोग के रूप में मिठाई लगाएं. साथ ही, तुलसी जरूर अर्पित करें. इसके साथ ही घी का दीपक और धूप जलाकर एकादशी व्रत कथा, चालीसा आदि का पाठ करें. दिनभर व्रत रखने के बाद दूसरे दिन शुभ मुहूर्त में पारण करें. 

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