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शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है दूध? जानें समुद्र मंथन के बाद कैसे शुरू हुई ये परंपरा

शिवलिंग का दूध से रुद्राभिषेक करने पर समस्त मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. सोमवार के दिन दूध का दान करने से चन्द्रमा मजबूत होता है. जल में थोड़ा सा दूध डालकर स्नान करने मानसिक तनाव दूर होता है और चिंताएं कम होती हैं.

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शिवलिंग को क्यों चढ़ाया जाता है दूध?
शिवलिंग को क्यों चढ़ाया जाता है दूध?
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शिवलिंग का दूध से रुद्राभिषेक करने से पूरी होगी मनोकामना
  • शिव को दूध अर्पित करते वक्त वो व्यर्थ नहीं होना चाहिए

दूध को धर्म के और मन पर प्रभाव के दृष्टिकोण से सात्विक  समझा जाता है. इसमें भी गाय का दूध सर्वाधिक पवित्र और अच्छा माना जाता है. शिवजी के रुद्राभिषेक (Rudrabhishek) में दूध का विशेष प्रयोग होता है. शिवलिंग (Shivling) का दूध से रुद्राभिषेक करने पर समस्त मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. सोमवार के दिन दूध का दान करने से चन्द्रमा मजबूत होता है. जल में थोड़ा सा दूध डालकर स्नान करने मानसिक तनाव दूर होता है और चिंताएं कम होती हैं.

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दूध के प्रयोग से दरिद्रता कैसे दूर होगी?
सोमवार रात्रि को एक साफ पात्र में दूध ले लें. इसमें एक चांदी का सिक्का और थोड़ा सा शहद डालें. इस पात्र को चन्द्रमा (Chandrama) की रोशनी में रखें. अब इसके सामने बैठकर शिवजी (Shivji) के मन्त्र "ॐ दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय" का जाप करें. मंत्र जप के बाद इस दूध को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.

सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना के बाद दूध का दान करना भी बेहद शुभ माना जाता है. भगवान शिव को दूध अर्पित करते वक्त ध्यान रखें कि वो व्यर्थ न हो. बेहतर है दूध को पात्र समेत ही अर्पित कर दें ताकि कोई और इसका प्रयोग कर सके.

जब संसार को बचाने के लिए शिव ने पिया था विष
सावन के महीने और सोमवार के दिन शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है. क्या आप इसके पीछे की वजह जानते हैं? इसका उत्तर समुद्र मंथन की कथा विष्णु पुराण और भागवत पुराण में वर्णित है. कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान संसार को बचाने के लिए जब भगवान शिव ने विष पी लिया था तब उनका पूरा कंठ नीला हो गया था.

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इस विष का प्रभाव भगवान शिव और उनकी जटा में बैठी  देवी गंगा पर भी पड़ने लगा. ऐसे में समस्त देवी-देवताओं ने शिवजी से दूध ग्रहण करने का आग्रह किया. शिव ने जैसे ही दूध ग्रहण किया, उनके शरीर में विष का असर कम होने लगा. हालांकि उनका कंठ हमेशा के लिए नीला हो गया और उन्हें एक नया नाम नीलकंठ मिला. तभी से शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.

 

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