अक्षरधाम मंदिर में दस हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने छह घंटों में न केवल अन्नकूट भोग के दर्शन किए बल्कि प्रसाद भोजन भी पाया. इस भोग में डेढ़ हजार से ज्यादा व्यंजन थे.
यूं तो अन्नकूट की परंपरा द्वापर युग में बालकृष्ण की गोवर्धन धारण लीला से शुरू हुई थी. कान्हा ने इंद्र का मान भंग करने और गोप ग्वाल समाज को प्रकृति से जोड़ने के लिए ये उपक्रम किया. इंद्र की पूजा बंद कर गिरिराज पर्वत की पूजा का विधान किया. इंद्र ने कोप कर घनघोर वर्षा की तो कान्हा ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन उठा लिया. सात दिन-रात बारिश हुई और भूखे प्यासे कान्हा ने गोवर्धन उठाए रखा.
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माता यशोदा जो रोज अपने लाडले लाल को आठ बार भोग लगाती थी वो भूखा प्यासा इंद्र को अंगूठा दिखाता रहा. ब्रजवासियों ने सात दिन की कसर एक दिन में ही पूरी कर दी. सात दिन के आठ भोग का हिसाब लगा 56 व्यंजन का भोग कान्हा को लगाया गया.