स्नान करने से शरीर नीरोग रहता है और मन प्रसन्न रहता है. नहाने से चेहरे की कांति और शारीरिक आकर्षण में भी बढ़ोतरी होती है. अगर इस नित्यकर्म के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखा जाए, तो आध्यात्मिक नजरिए से भी ज्यादा लाभ पाया जा सकता है.
नहाने के क्रम में जिन बातों का खयाल जरूर रखा जाना चाहिए, आगे उन बातों की चर्चा की गई है:
1. स्नान करने के बाद लोग शुद्ध होकर पूजा-पाठ, जप आदि सारे काम करने के योग्य बनते हैं, इसलिए सुबह को ही स्नान कर लेना चाहिए.
2. शास्त्रों में कहा गया है कि स्नान करने से इन 10 गुणों की प्राप्ति होती है- रूप, तेज, बल, पवित्रता, आयु, आरोग्य, निर्लोभता, दु:स्वप्न का नाश, तप और मेधा.
3. लक्ष्मी (धन), पुष्टि व आरोग्य (स्वास्थ्य) चाहने वालों को हर मौसम में और हर दिन स्नान करना चाहिए.
4. शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह स्नान करने से पाप का नाश होता है और पुण्य मिलता है. ऐसा कहा गया है कि सुबह नहाने वालों के पास भूत-प्रेत आदि नहीं फटकते हैं. इसलिए सुबह स्नान करना ही उचित है.
5. बीमारी की हालत में सिर के नीचे से ही स्नान करना चाहिए. गीले कपड़े से शरीर पोंछ लेना भी एक तरह का स्नान ही कहा गया है.
6. सुबह की लालिमा छाने से पहले ही स्नान लेना श्रेष्ठ माना गया है.
7. तेल लगाकर और देह को मल-मलकर नदी में नहाना मना है. इसकी जगह नदी से बाहर निकलकर तट पर ही शरीर साफ करके तब नदी में डुबकी लगाना उचित है.
8. जिन घाटों पर कपड़े धोए जाते हैं, वहां का जल अपवित्र माना गया है. इसलिए वहां से कुछ दूर हटकर ही नहाना चाहिए.
9. नदी की धारा की ओर या सूर्य की ओर मुंह करके नहाना चाहिए. नदी में 3, 5, 7 या 12 डुबकियां लगाना अच्छा बताया गया है.
10. पवित्र नदियों में कपड़े निचोड़ने की मनाही है. नदी में किसी तरह की गंदगी नहीं बहानी चाहिए.
11. किस स्रोत का पानी ज्यादा बढ़िया होता है, इस बारे में भी शास्त्रों में जिक्र मिलता है. कुएं की तुलना में झरने का पानी, झरने से ज्यादा नदी का पानी, नदी के पानी से किसी तीर्थ का जल, तीर्थ के जल से गंगाजल अधिक श्रेष्ठ माना गया है.
12. गंगा माता का कथन है कि स्नान करते वक्त कोई चाहे जहां भी मेरा स्मरण करेगा, मैं वहां के जल में आ जाऊंगी. स्नान करते वक्त गंगा के उन कथनों को इस श्लोक के रूप में पढ़ना चाहिए:
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय।
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।। (आचारप्रकाश से)