शक्ति के 3 ऐसे धाम हैं जिनके दर पर जाकर भक्तों को मिलती है असीम शांति और उनके तमाम दुख, तकलीफों का हो जाता है नाश. पश्चिम बंगाल के बीरभूम में मौजूद मां तारा के धाम पर भक्तों के हर दुख को मां हर लेती है. 10 महाविद्याओं में से एक मां तारा के दर से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता.
शंख के पवित्र नाद से गूंजता मां का दरबार, देवी दर्शन को आतुर श्रद्धालुओं की भीड़, माता के गीतों को गाते-गुनगुनाते भक्त, मन में भक्ति और आंख में पल भर मां को निहार लेने की चाहत. मां तारा के मंदिर में भक्ति का ये अलौकिक नज़ारा दिखता है. जो कि भक्तों को बांध लेता है, भक्ति के रस में डुबो देता है.
मां के चमत्कार की कई कहानियां यहां सुनने को मिल जाती हैं तो मंदिर के निर्माण के बारे में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं. माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब भगवान शिव ने विषपान किया था तो विष के प्रभाव से उनका कण्ठ नीला पड़ गया और विष के असर को कम करने के लिए मां तारा ने उन्हें स्तनपान कराया था. इस मंदिर में मौजूद मां तारा की प्रतिमा में मां की गोद में भगवान शिव आज भी विराजमान हैं.
मंदिर बनने के बाद प्राकृतिक कारणों से दो बार मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था लेकिन मां की मूर्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंता जिसके बाद उनके भक्तों ने पुन: इस मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया.
मां तारा की पूजा-अर्चना के लिए मंदिर में सुबह के तीन बजे से ही माता का दरबार सजना शुरू हो जाता है. सुबह-सेवेरे सबसे पहले मां को स्नान कराया जाता है जिसमें गुलाबजल, गंगाजल, शहद, घी और जवा कुसुम का तेल प्रयोग किया जाता है. माना जाता है कि मां को स्नान कराना पूजा का अभिन्न अंग है जिसमें मदिरा का प्रयोग अनिवार्य होता है.
स्नान के बाद बारी आती है मां के श्रृंगार की. मां को राजभूषा, मुकुट, केश, सिंदूर और बिंदी लगाकर भव्य रूप में तैयार किया जाता है. पूजा पाठ की इन सभी रस्मों के बीच सबसे अनोखी बात है कि मां की आरती के बाद सबसे पहले मां को मिश्री के पानी का भोग लगाया जाता है. यूं तो सालभर मां को खीर, दही, मिठाई खिचड़ी, सब्जी और पांच तरह के पकवान का भोग लगाया जाता है लेकिन मां के भोग में मिठाई का होना बेहद जरूरी है. कहते हैं मां को मिठाई का भोग लगाने से मां जल्द प्रसन्न होकर भक्तों को दे देती हैं मनचाहा वरदान. संध्या आरती से पहले शाम में मां का फूलों से श्रृंगार होता है और रात में शीतल भोग लगाने के बाद ही मंदिर के पट बंद कर दिये जाते हैं.
आमतौर पर भक्त तो दिन में ही माता की पूजा अर्चना करते हैं लेकिन तंत्र साधना करने वाले रात में मां की साधना करते हुए दिखायी देते हैं. कहते हैं गुप्त विद्या की प्राप्ति के लिए यहां साधना करने वालों को मां का आशीर्वाद जरूर मिलता है. मंदिर के पास ही नदी के किनारे श्मशान घाट के पास कई साधक घंटों तपस्या कर मां से सिद्धियां प्राप्त करते हैं.
बीरभूम में ही विराजती मां नलाटेश्वरी देवी. कहते हैं जब माता सती के शरीर को लेकर शिव तांडव कर थे तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. बीरभूम में इसी स्थान पर मां के गले की नली गिरी थी जिसके कारण मां के इस धाम का नाम नलाटेश्वरी पड़ा.
रोशनी में नहाया मंदिर एक सती की महिमा, आस्था की जीत और एक राजा के घमंड टूटने की कहानी कहता है. ये कहानी है पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के नलाटेश्वरी देवी मंदिर की. नलाटेश्वरी देवी... देश की 51 शक्तिपीठों में एक... शक्ति का वो परम धाम जहां गिरी थी सती के गले की नली जिसके चलते इस पवित्र दरबार का नाम ही पड़ गया नलाटेश्वरी देवी मंदिर.
दरअसल जब पिता के अपमान से तिलमिलाई माता पार्वती सती हो गईं तो भगवान शिव ने उनके शरीर के साथ तांडव करना शुरू कर दिया. सृष्टि में संहार के डर से विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का सहारा लिया और पार्वती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए. वो टुकड़े जहां-जहां गिरे, वो शक्ति-पीठ कहलाए. उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है नलाटेश्वरी देवी मंदिर. कहते हैं कि माता सती की यहां गले की नली गिरी थी. वर्षों बाद माता ने एक भक्त को सपने में दर्शन दिए जिसके बाद इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया.
माता की प्रतिमा के नीचे मौजूद नली उसी घटना को दर्शाती है जिसमें आज भी 24 घंटे जल भरा रहता है. पत्थरों से बीच घिरी इस नली में आज भी जल का स्तर एक समान बना रहता है.
मान्यता है कि नलाटेश्वरी देवी की अगर विधि विधान से पूजा कर ली जाए, तो मां उसे तुरंत फल भी दे देती हैं और अगर आपके दापंत्य संबंधों में कोई दरारा आ गयी है फिर आप अपने रिश्तों में मिठास लाना चाहते हैं तो मां के दरबार में शीश नवाने भर से रिश्तों में मधुरता आती है.
मां का आशीर्वाद पाने के लिए सुबह सवेरे स्नान कराकर देवी का भव्य सिंदूरी श्रृंगार किया जाता है उसके बाद शुरू होती है सुबह की मंगला आरती. मां को भोग में मछली, चावल चढ़ाया जाता है.
आमतौर पर यहां हर दिन मां की ऐसे ही पूजा की जाती है लेकिन दुर्गापूजा और काली पूजा पर इस मंदिर की छटा देखते ही बनती है. मां के इस दरबार में महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है. इसके अलावा ज्येष्ठ महीने की षष्ठी का दिन भी खास होता है इस दिन मंदिर में विशेष आयोजन होता है. बगांल में इस दिन को जमाई षष्ठी कहा जाता है और इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर मां का आशीर्वाद लेते हैं .
अब पढ़िए मिर्जापुर के विन्ध्य पर्वत पर विराजमान मां अष्टभुजा की महिमा के बारे में. मां अष्टभुजा, भय को दूर कर सफलता का आशीर्वाद देने वाली, विद्या, बुद्धि का वरदान देने वाली, मुश्किलों को हरने वाली मां. इस सिद्धपीठ की विशेषता ही यही है कि यहां से कभी कोई खाली हाथ नहीं जाता, यहां कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं रहती, राजा हो या रंक, मां यहां सभी पर एक समान कृपा बरसाती हैं.
मां अष्टभुजा का ये पावन धाम बसा है मिर्जापुर में विन्ध्य पर्वत पर निवास करने वाली मां विन्ध्यवासनी के पश्चिमी छोर पर. पहली बार मां अष्टभुजा का नाम सुनकर लगता है कि मां आठ भुजाओं वाले रूप में देती हैं भक्तों को दर्शन लेकिन मां के नाम की कहानी उनके रूप से नहीं बल्कि उनकी इस पर्वत पर स्थापित होने से जुड़ी है.
कहते हैं द्वापर युग में कंस के बढ़ते अत्याचार से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए गर्ग ऋषि विन्ध्य पर्वत पर मां को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की जिसके बाद मां ने नंद बाबा के घर कन्या रूप में जन्म लिया. लेकिन वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को गोकुल छोड़कर कन्या को अपने साथ कारागार में ले आए. कंस को जब देवकी की आठवीं संतान के होने की खबर मिली तो कंस ने उस कन्या को मानने के लिए जैसे ही पत्थर पर फेंकने की कोशिश कि कन्या हवा में उड़ गई और उसने अष्टभुजा देवी का रूप धारण कर लिया. विन्ध्य पर्वत मां अष्टभुजा के रूप में मां योगमाया के ही दर्शनों का सौभाग्य भक्तों को मिलता है जिन्हें भक्त मां अष्टभुजा के नाम से पूजते हैं और इस बात का प्रमाण देते हैं मां के चरणों पर मौजूद उंगलियों को निशान. कहते हैं ये कंस के उंगलियों के निशान हैं.
मां अष्टभुजा को वैसे समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है लेकिन विशेष तौर पर भक्त मां को ज्ञान की देवी के रूप में पूजते हैं. जिन्हें मां के आम मंदिरों की तरह नारियल और पुष्प के चढ़ावे से किया जाता है प्रसन्न्. मान्यता है कि एक बार मां का आशीर्वाद मिल जाए तो बड़े से बड़ा संकट भी दूर हो जाता है और काम में सफलता मिलने लगती है.
मां अष्टभुजा का ये भव्य रूप भक्तों को उनकी तरफ खींचता है. ये देवी के प्रति श्रद्धा और विश्वास ही है कि नवरात्र में मां विन्ध्यवासिनि के दर्शन कर भक्त मां अष्टभुजा के दर्शन जरूर करते हैं. और खुद को धन्य मानते हैं.