लगभग 400 साल तक बर्फ के अंदर पूरी तरह से ढका हुआ बाबा केदारनाथ का मंदिर जिसे बारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है, जिसकी महिमा अपरंपार है. आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके दर्शन के लिए पहुंचे हैं.
चारों तरफ बर्फ के पहाड़ और दो तरफ से
मन्दाकिनी और सरस्वती नदियों के बीचों बीच
खड़ा शिव का ये अनोखा मंदिर 2013 में बेहद
भयावह और विनाशकारी आपदा को झेल चुका है
और न जाने और भी कई छोटी बड़ी आपदाओं को
झेलने वाले बाबा केदार के इस धाम में बाबा की
ऐसी महिमा है कि कभी इस मंदिर का बाल भी
बांका नहीं हो पाया, मंदिर के अंदर प्रचीन काल से
ही देवी-देवताओं की सुन्दर प्रतिमाएं हैं.
श्रृद्धालुओं के लिए खुले केदारनाथ के कपाट, शुरू हुई चार धाम यात्रा
इसके साथ यहां भैरोनाथ जी का मन्दिर, आदिशकंराचार्य की समाधि व गांधी सरोवर के भी दर्शन कर सकते हैं.
कैसे और कब हुई बाबा केदार की स्थापना
और कब होते हैं बाबा के दर्शन
पुराणों में वर्णित मान्यताओं के अनुसार
महाभारत की लड़ाई के बाद पाण्डवों को जब अपने
ही भाइयों के मारे जाने पर भारी दुख हुआ तो वे
पश्चाताप करने के लिए केदार की इसी भूमि पर
आ पहुंचे, कहते हैं उनके ही द्वारा इस मंदिर की
स्थापना हुई.
स्वर्ग के द्वार खोलते बद्रीनाथ-केदारनाथ
केदारनाथ की निरभ्र घाटी में भगवान शिव के दर्शन जहां नास्तिक को आस्तिक बना देते हैं, वहीं आस्तिक को परम आस्था से लबरेज कर परमात्मा के और करीब कर देते हैं.
केदारनाथ पहुंचने के लिए गौरीकुण्ड से 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है. हालांकि 2013 की आपदा के बाद ये दूरी कुछ हद तक बढ़ गई है.
केदारनाथ के दर्शन प्रात: 6 से 2 और शाम 3 से 5 बजे तक किए जा सकते हैं. अगस्त में रक्षाबंधन से पूर्व यहां श्रावणी अन्नकूट मेला लगता है. कपाट बन्द होने के दिन विशेष समाधि शंकराचार्य की पूजा होती है. केदारनाथ त्याग की भावना को भी दर्शाता है. हालांकि आपदा के बाद से यहां शंकराचार्य की समाधि नहीं है ये समाधि आपदा में बह गई थी.
बाबा केदार के अलावा अलग-अलग स्थानों में शिव के चार अंगों की पूजा होती है. उनका नाभि प्रदेश मदमहेश्वर में, भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में और जटाएं कल्पेश्वर में पूजी जाती है. केदारनाथ समेत शिव के ये सभी रूप पंचकेदार के नाम से पूजे जाते हैं. कपाट बंद होने से लेकर खुलने तक केदारनाथ की डोली उखीमठ में ले जाई जाती है जहां 6 महीने तक उनके दर्शन उखीमठ स्थित मंदिर में ही हो पाते हैं, जहां भक्त उनके दर्शन का लाभ लेते हैं.
तस्वीरों में देखें केदारनाथ की तबाही का मंजर
इसलिए होती है इस हिस्से की पूजा
भगवान यहां पर नदी के पिछले भाग यानी
पूंछ वाले हिस्से में भक्तों को दर्शन देते हैं. कहा
जाता है कि जब पांडव यहां आये तो भगवान शिव
उनसे खफा थे वो नहीं चाहते थे कि पांडव उनके
दर्शन कर सकें, लेकिन पांडवो को तो भगवान शंकर
के दर्शन करने की मानो जिद थी. यही कारण था
की शिव ने नदी रूप धारण कर लिया था. पांडवो से
छुपने के लिए भगवान शिव जैसे ही पाताल में
जाने लगे वैसे ही पांडवों ने भगवान के नदी स्वरूप
के पीछे का हिस्सा पकड़ लिया, लेकिन तब तक
भगवान शिव आधे पाताल में जा चुके थे, तभी से
भगवान के पिछले हिस्से की पूजा केदार में और
उनके मुख रूप की पूजा नेपाल में पशुपति नाथ
मंदिर के रूप में की जाती है.
किस शैली में बना है केदारनाथ मंदिर
बाबा केदार का ये धाम कात्युहरी शैली में
बना हुआ है. इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े
पत्थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है. मंदिर
की छत लकड़ी की बनी हुई है, जिसके शिखर पर
सोने का कलश रखा हुआ है. मंदिर के बाहरी द्वार
पर पहरेदार के रूप में शिव के सबसे प्रिय नंदी की
विशालकाय प्रतिमा बनी हुई है.
केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है. पहला-गर्भगृह, दूसरा-दर्शन मंडप जहां पर दर्शानार्थी एक बड़े प्रागण में खड़े होकर पूजा करते हैं, तीसरा- सभा मण्डप, इस जगह पर सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं. तीर्थयात्री यहां भगवान शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि के साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्णु और लक्ष्मी, कृष्ण, कुंति, द्रौपदि, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी करते हैं.