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जगह-जगह बिखरे हैं पवनपुत्र के निशान

पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बना है आस्था का ऐसा परम धाम जहां आज भी मिलते हैं पवनपुत्र हनुमान के निशान. जी हां, बात ऐसे धाम की जहां पहुंचना बेहद मुश्किल है लेकिन जो कोई यहां पवनपुत्र के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर लेता है, उसकी कोई इच्छा बाकी नहीं रहती.

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पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बना है आस्था का ऐसा परम धाम जहां आज भी मिलते हैं पवनपुत्र हनुमान के निशान. जी हां, बात ऐसे धाम की जहां पहुंचना बेहद मुश्किल है लेकिन जो कोई यहां पवनपुत्र के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर लेता है, उसकी कोई इच्छा बाकी नहीं रहती. ये जगह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं पर बालक हनुमान के मुहं में समा गए थे जग को रोशन करने वाले सूर्य भगवान.

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जमीन से पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है संकटमोचन का ये धाम. आसमान से बातें करता है ये स्थान, अंजनिपुत्र के बल, उनकी महानता, उनकी भक्ति की कहानी सुनाता है ये धाम.

अंजनेरीपर्वत पर मां अंजनि और हनुमान के दर्शन करने आने वालों को यहीं दिखता है वो चमत्कार जो लाखों करोडों साल पहले हुआ था. लेकिन उसकी निशानियां आज भी भक्तों को हैरान करने के लिए मौजूद हैं. जी हां यहां पांव के आकार जैसा दिखने वाला एक सरोवर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये बाल हनुमान के पैरों के दबाव से बना है.

कहानी उस समय की है जब अंजनिपुत्र बेहद छोटे थे. मां चाहे जितना खाने को दे, उनकी भूख शांत ही नहीं होती थी. एक बार उन्होंने यहीं से सूर्यदेव को आकाश में चमकते हुए देखा. सुर्ख लाल सूरज को देख उन्हें लगा ये कोई फल है, फिर क्या एक पैर जमीन पर दबा कर उन्होंने जोर से छलांग लगाई और उस फल को मुहं में दबा लिया. सूर्यदेव हनुमान के मुहं में गए और जग में छा गया अंधेरा. कहते हैं कि तब सूरज को हनुमान के मुहं से निकालने के लिए इंद्र ने उनकी ठोडी पर वार कर दिया जिससे सूर्यदेव को तो मुक्ति मिल गई लेकिन उनकी ठोड़ी टूट गई. इसी वजह से उनका नाम पड़ गया हनुमान.

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अंजनेरीपर्वत पर बना ये सरोवर आज भी उस घटना की याद दिलाता है. अंजनि और संकटमोचन के दर्शन को आने वाले भक्त इस सरोवर में डुबकी लगाये बिना नहीं लौटते. ये मान्यता है कि इसके पानी को छूना बजरंगबली के चरण स्पर्श करने के बराबर है.

अंजनेरीपर्वत पर मां अंजनि और हनुमान जी की रोज सुबह शाम आरती होती है जिसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैँ. यहां पहुंचने का रास्ता मुश्किल जरूर है लेकिन अंजनिपुत्र के दर्शन मात्र से दूर हो जाती है भक्तों की थकान.

भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए 11 दिनों तक एक साथ बैठ कर पाठ करते हैं. बजरंगबली की पूजा और महिमा गान जितना जरूरी है उतना ही महत्वपूर्ण है आराध्य प्रभु राम के नाम का पाठ. ऐसा करने से भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और दे देते हैं मनचाहा वर.

अंजनेरीपर्वत पर हनुमान की वीरता की कहानियां बिखरी पड़ी हैं तो वहीं झारखंड के गुमला जिले से भी है संकटमोचन का नाता. कहते हैं गुमला पवनपुत्र का ननिहाल था यहीं अंजनि ने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा गुजारा. यहां मौजूद माता अंजनि और हनुमान की निशानियां आज भी भक्तों को अभिभूत कर देती हैं.

झारखण्ड में बियाबान जंगलों के बीच बसा है वो स्थान जहां अपनी माता की गोद में विराजते हैं अंजनिपुत्र हनुमान. ये भूमि कहती है कहानी माता अंजनि के तप की. इसी जमीन पर कठोर तप कर माता अंजनि ने पाया हनुमान जैसा पुत्र.

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झारखण्ड में रांची से करीब 140 किमी. की दूर गुमला जिले में घने जंगलों के बीच अपनी माता की गोद में दर्शन देते हैं संकटमोचन. लेकिन बियाबान जंगलों के बीच भक्तों के भक्त हनुमान के दर्शन के लिए पहुंचना बेहद मुश्किल और हिम्मत भरा काम है क्योंकि ये इलाका बेहद दुर्गम और यातायात के साधनों से दूर है. लेकिन जो भी भक्त माता अंजनि संग हनुमान के दर्शन करने में सफल होता है उन्हें यहां मिलती है असीम शांति और ऊर्जा.

कहते हैं कि ये स्थान हनुमान का ननिहाल है. उनकी मां अंजनि यहीं पैदा हुईं और पली बढ़ीं और बाद में उन्होंने शाप से मुक्ति पाने के लिए यहां तपस्या भी की. यहां के लोगों की माने तो इस इलाके में करीब 360 सरोवर और 360 शिवलिंग मौजूद हैं. अपने तप के दौरान माता अंजनि घने जंगलों के बीच रहकर रोज नए-नए सरोवर में स्नान कर अलग-अलग शिवलिंग की उपासना करती थीं. पुराणों के अनुसार माता अंजनी को श्राप था कि वो कुंवारी मां बनेंगी. इसी वजह से उन्होंने ऐसे बियावान जंगल को चुना जहां उन पर किसी पर-पुरुष की छाया भी ना पड़े. उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ही भोलेनाथ ने उनके गर्भ से ग्यारहवे रूद्र अवतार हनुमान के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था.

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इसके अलावा इस स्थान से जुड़ी है एक और कहानी वो भी हनुमान की माता अंजनि के पूर्व जन्म की. कहते हैं कि माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं. वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी. एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी. गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा. ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी. तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा. तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा. यही वो जगह थी जहां अंजनि को हनुमान जैसे वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला.

मान्यता है कि यहां आने से और मां अंजनि संग हनुमान जी के दर्शन मात्र कर लेने से भक्तों की सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं. खास तौर पर संतान की कामना लेकर आने वालों को जरूर मिलता है माता अंजनि और पवनपुत्र का आशीर्वाद.

माता अंजनि की गोद में बैठे शिशु हनुमान के दर्शन तो आपने कर लिए. अब चलिए जयपुर, जहां बाल मुद्रा में दुख हरते हैं बजरंगबली; इस मंदिर में संकटमोचन बच्चों के कष्ट विशेष रूप से हरते हैं. माना जाता है कि यहां आने के बाद बच्चों को कभी कोई दुख छू भी नहीं पाता.

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