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जहां हर साल बढ़ जाती है शिवलिंग की आकृति...

अपने देश के शिवालयों में एक ओर जहां महाकाल और अन्य शिवलिंग के आकार छोटे होते जाने की खबर आती है, वहीं छत्तीसगढ़ में एक शिवलिंग ऐसा भी है जिसका आकार घटता नहीं, बल्कि हर साल और बढ़ जाता है. यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से निर्मित है.

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भगवान शिव की महिमा है अपरम्‍पार
भगवान शिव की महिमा है अपरम्‍पार

अपने देश के शिवालयों में एक ओर जहां महाकाल और अन्य शिवलिंग के आकार छोटे होते जाने की खबर आती है, वहीं छत्तीसगढ़ में एक शिवलिंग ऐसा भी है जिसका आकार घटता नहीं, बल्कि हर साल और बढ़ जाता है. यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से निर्मित है.

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हर साल सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार को इस शिवलिंग के दर्शन करने और जल चढ़ाने सैकड़ों कांवड़िए यहां लंबी पैदल यात्रा करके पहुंचते हैं. सूबे के गरियाबंद जिले में स्थित इस शिवलिंग को यहां भूतेश्वरनाथ के नाम से पुकारा जाता है. द्वादश ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग होने की मान्यता प्राप्त है. सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस शिवलिंग का आकार लगातार हर साल बढ़ रहा है. संभवत: इसलिए यहां पर हर साल पैदल आने वाले भक्तों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. छत्तीसगढ़ी भाषा में हुंकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं, इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है.

गरियाबंद जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच बसा है गांव मरौदा. सुरम्य वनों एवं पहाड़ियों से घिरे अंचल में प्रकृति प्रदत्त विश्व का सबसे विशाल शिवलिंग विराजमान है. इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि कई साल पहले जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभा सिंह जमींदार की यहां पर खेती-बाड़ी थी.

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शोभा सिंह हर शाम अपने खेत में घूमने जाते थे. उस खेत के पास एक विशेष आकृतिनुमा टीले से सांड के हुंकारने और शेर के दहाड़ने की आवाज आती थी. कई बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभा सिंह ने यह बात ग्रामवासियों को बताई. ग्रामवासियों ने भी शाम को आवाज कई बार सुनी थी. इसके बाद आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की. परंतु दूर दूर तक कोई जानवर नहीं मिला, तब लोगों ने माना कि इसी टीले से आवाज आती है.

लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे. इस बारे में पारा गांव के लोग बताते हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था, धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई एवं गोलाई बढ़ती गई, जो आज भी जारी है. इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जल लहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है.

यहीं स्थान भूतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से जाना जाता है. इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन् 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका 'कल्याण' के वार्षिक अंक में उल्लेखित है, जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा विशाल शिवलिंग बताया गया है. यह जमीन से लगभग 18 फीट ऊंचा और 20 फीट गोलाकार है.

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