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यहां शिव से बड़ी है उनके भक्‍त नंदी की महिमा

महादेव के विशालकाय द्वारपाल शक्ति और भक्ति की वो मूरत हैं, जिनकी आज्ञा के बिना महादेव के दर्शन नहीं होते. बिग बुल मंदिर में 15 फीट के विशालकाय नंदी मौजूद हैं. मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों की निगाहें उस विशालकाय प्रतिमा को एकटक निहारती ही रह जाती हैं.

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महादेव के विशालकाय द्वारपाल शक्ति और भक्ति की वो मूरत हैं, जिनकी आज्ञा के बिना महादेव के दर्शन नहीं होते. बिग बुल मंदिर में 15 फीट के विशालकाय नंदी मौजूद हैं. मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों की निगाहें उस विशालकाय प्रतिमा को एकटक निहारती ही रह जाती हैं.

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नंदी भोले के द्वारपाल हैं, जिनकी इच्छा के बिना भक्ति के द्वार नहीं खुलते. नंदी की मर्जी के बिना शिव-शंकर किसी से नहीं मिलते. यही वजह है कि हर शिव मंदिर के बाहर उनकी मूर्ति जरूर रहती है और उनके दर्शन करके ही भक्त शिव मंदिर में प्रवेश करते हैं. नंदी भक्ति और शक्ति का प्रतीक हैं और शक्ति का एक ऐसा ही विशाल स्वरूप देखने को मिलता है बिग बुल मंदिर में.

बैंगलोर के बसवनगुडी़ में बुल टेंपल रोड पर बिग बुल मंदिर है, जहां प्रवेश करते ही भक्तों की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं. यहां प्रवेश करते ही नंदी की विशालकाय प्रतिमा महादेव के भक्तों का स्वागत करती है और भोले भंडारी के भक्तों की गुहार उन तक पहुंचाती है.

वैसे तो महादेव के हर मंदिर के बाहर नंदी विराजमान रहते हैं और उनकी आज्ञा लेकर ही भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं, लेकिन बिग बुल मंदिर में नाम के ही अनुरूप नंदी की एक ही पत्थर की काली रंग की विशालकाय प्रतिमा मौजूद है, जो 15 फीट ऊंची और करीब 20 फीट चौड़ी है और जो दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए खास आकषर्ण का केन्द्र होती है.

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बिग बुल मंदिर के नाम पर ही इस इलाके का नाम बसवनगुडी़ पड़ा है, क्योंकि स्थानीय भाषा में बसवन का अर्थ बुल और गुड़ी का अर्थ मंदिर होता है. हिंदू धर्म में बुल को नंदी से जोड़कर ही देखा जाता है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम बिग बुल रखा गया. मान्यता है कि सोलहवीं शताब्दी में बने इस मंदिर की स्थापना बैंगलोर के संस्थापक केंपी गौंड़ा ने की थी.

इस मंदिर में पूजा व श्रृंगार के अनोखे विधि विधान हैं, यहां मक्खन से नंदी का अभिषेक किया जाता है. कहते हैं इस श्रृंगार में करीब 100 किलो मक्खन का इस्तेमाल होता है, जिसके दर्शन कर भक्त निहाल हो उठते हैं. सुबह सवेरे 6 बजे मंदिर आम भक्तों के लिए खोल दिया जाता है और रात 8 बजे तक खुला रहता है. कहते हैं यहां जो भी आता है वो खाली हाथ कभी नहीं लौटता. महादेव बिगड़े काम बनाते हैं और भक्तों पर खुशियां लुटाते हैं. तभी तो नंदी संग शिव के इस मनोहारी रूप के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है.

इस मंदिर का नाम बिग बुल रखने के पीछे भी एक कहानी है. महादेव एक बार जिसे गले लगा लेते हैं उसका साथ कभी नहीं छोड़ते. जिस पर औघड़दानी की कृपा बरसती है वो अजर-अमर हो जाता है. शिव के परमभक्त, उनके वाहन नंदी के साथ भी कुछ ऐसा ही है, तभी तो कोई भी शिवाला हो या फिर कोई मंदिर, हर जगह नंदी, शिव परिवार के संग जरूर नजर आते हैं. लेकिन बिग बुल मंदिर में नंदी की भक्ति और उनकी शक्ति की एक अलग ही कहानी देखने और सुनने को मिलती है.

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इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक पौराणिक मान्यता है. कहा जाता है कि कई सौ साल पहले इस मंदिर के आस-पास बड़ी संख्या में नारियल की खेती की जाती थी. लेकिन एक बार एक जंगली बैल ने पूरे इलाके में हाहाकार मचा दिया, उसने खेतों में घुसकर नारियल की पूरी खेती बरबाद कर दी. तभी गुस्साए हुए एक किसान ने एक डंडे से उस पर हमला कर दिया और देखते-देखते चमत्कार हो गया और वो बैल एक काले रंग की पत्थर की प्रतिमा में बदल गया. स्थानीय लोगों का कहना है कि काले रंग की प्रतिमा में बैल का आकार लगातार बढ़ता ही जा रहा था, तब उसके बढ़ते हुए आकार को रोकने के लिए महादेव के प्रतिरूप में त्रिशूल को बैल के माथे में स्थापित किया गया, जिससे बैल का आकार बढ़ना रुक गया. यहीं पर बाद में केंपी गौंड़ा ने शिवलिंग की स्थापना कर मंदिर का निर्माण करवाया.

इस मंदिर की स्थापना के साथ ही यहां नारियल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई जो आज भी अपने मूल रूप में उसी तरह निभायी जा रही है. हर साल नवंबर-दिसंबर के महीने में यहां नारियल मेले का आयोजन होता है जब मंदिर के बाहर सड़क के दोनों ओर नारियल की बड़ी-बड़ी दुकानें सज जाती हैं. आम भाषा में इस मेले को कदलकवि परिशे कहा जाता है.

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मान्यता है कि जब इस मंदिर का निर्माण हुआ तब वहां के किसानों ने नारियल चढ़ाने की परंपरा शुरू की थी, जो गुजरते समय के साथ बढ़ती चली गई. आज भी कई ऐसे किसान हैं जो अपनी फसल का पहला हिस्सा मंदिर में अर्पित करते हैं और भक्तों की इसी आस्था ने आज एक मेले का रूप ले लिया है.

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