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गरीब ईश्वर में अधिक विश्वास करते हैं!

कठिन वातावरण में रहने वाले समाज के लोगों का भगवान में अपेक्षाकृत अधिक विश्वास हो सकता है. एक अध्ययन के अनुसार, ऐसे समाज, जिनमें खाने-पीने की समस्या है, अभाव है, उन्हें ईश्वर में अधिक विश्वास हो सकता है.

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भगवान श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण

कठिन वातावरण में रहने वाले समाज के लोगों का भगवान में अपेक्षाकृत अधिक विश्वास हो सकता है. एक अध्ययन के अनुसार, ऐसे समाज, जिनमें खाने-पीने की समस्या है, अभाव है, उन्हें ईश्वर में अधिक विश्वास हो सकता है.

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ऑकलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और जर्मनी में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर हिस्ट्री एंड साइंसेज के संस्थापक निदेशक रशेल ग्रे ने बताया, 'जब जिंदगी में मुश्किलें होती हैं या जब अनिश्चितता होती है, तब लोग ईश्वर में यकीन करते हैं. समाज समर्थक व्यवहार लोगों को कठिन और अप्रत्याशित वातावरण में भी अच्छा काम करने में मदद कर सकता है.'

अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना के नेशनल इवोल्यूशनरी सिंथेसिस सेंटर (एनईएससेंट) द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि जिस तरह शारीरिक बनावट लोगों को दुर्गम स्थानों पर निवास में मदद करती है, उसी तरह ईश्वर में विश्वास भी गरीबी और खराब पस्थितियों में मानव संस्कृति के लिए लाभकारी है.

ग्रे और अध्ययन में उनके सह-लेखकों ने नैतिक संहिता लागू करने वाले ईश्वर में विश्वास और अन्य सामाजिक विशेषताओं के बीच मजबूत संबंध पाया. शोधकर्ताओं ने ईश्वर में यकीन और बाह्य चरों के बीच बहुपक्षीय संबंधों का वर्णन करने के लिए 583 समाजों का ऐतिहासिक, सामाजिक और पारिस्थितिक आकड़ों का इस्तेमाल किया.

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शोधकर्ताओं ने पाया कि राजनैतिक जटिलता, यानी स्थानीय समुदायों में सामाजिक पदानुक्रम और पशुपालन का अभ्यास, दोनों का संबंध ईश्वर में विश्वास से है. लंबे समय से यह बताया जाता रहा है कि धर्म का उद्भव या तो संस्कृति या पर्यावरणीय कारकों का परिणाम है, लेकिन दोनों का नहीं.

नॉर्थ कैरोलिना स्टेट युनिवर्सिटी के शोधकर्ता और अध्ययन के प्राथमिक लेखक कार्लोस बोटेरो ने बताया, 'नए परिणाम संकेत देते हैं कि जटिल व्यवहार और विशेषताएं मनुष्य के लिए पास्थितिकी, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चरों के मिश्रण से मनुष्य को ऊपर उठाने में विशेष भूमिका निभाते हैं.' शोध दल आगे उन प्रक्रियाओं का पता लगाने की योजना बना रहा है जो मानव व्यवहार के विकास को प्रभावित करती हैं. यह शोध 'प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडेमीज ऑफ साइंस' में प्रकाशित होगा.

---इनपुट IANS से

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