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चाणक्य नीति: दूसरों के कारण भोगना पड़ता है दुख, जब बन जाए ये स्थिति

Chanakya Niti In Hindi, Ethics of Chanakya, Chanakya Quotes: आचार्य चाणक्य की नीतियां सदियों पहले जितनी प्रमाणिक रही आज भी उतनी ही कारगर हैं. उन्हें महान कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञों में से एक माना जाता है. आचार्य चाणक्य ने अपनी किताब चाणक्य नीति में जीवन को सफल और खुशहाल बनाने के लिए नई नीतियां और उपाए बताए हैं.

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Chanakya Niti In Hindi, Ethics of Chanakya, Chanakya Quotes
Chanakya Niti In Hindi, Ethics of Chanakya, Chanakya Quotes

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आचार्य चाणक्य की नीतियां सदियों पहले जितनी प्रमाणिक रहीं आज भी उतनी ही कारगर हैं. उन्हें महान कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञों में से एक माना जाता है. आचार्य चाणक्य ने अपनी किताब चाणक्य नीति में जीवन को सफल और खुशहाल बनाने के लिए नई नीतियां और उपाए बताए हैं, जिनका अनुसरण कर जीवन को सफल बना सकते हैं. चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के 6वें अध्याय के 10वें श्लोक में बताया है कि हमें कब दूसरों के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।

भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।

चाणक्य कहते हैं कि पति-पत्नी को एक-दूसरे के द्वारा किए गए गलत कामों का फल भोगना पड़ता है. अगर पति कुछ भी गलत करता है तो उसका फल पत्नी को भोगना पड़ता है और अगर पत्नी कुछ गलत करती है तो उसका फल पति को भोगना पड़ता है. इसलिए परेशानियों से बचने के लिए पति-पत्नी को एक-दूसरे को गलत काम करने से रोकना चाहिए.

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चाणक्य कहते हैं कि अगर सरकार में मंत्री या सलाहकार अपना काम ठीक तरह से नहीं करते हैं और राजा को सही या गलत कामों की जानकारी नहीं देते हैं या उचित सुझाव नहीं देते हैं, तो राजा के गलत कार्यों के जवाबदार पुरोहित, सलाहकार और मंत्री ही होते हैं. इसलिए पुरोहित का कर्तव्य है कि वह राजा को सही सलाह दें और गलत कार्यों को करने से रोकें.

चाणक्य नीति कहती है कि अगर किसी राज्य या देश की अवाम कोई गलत काम करती है तो उसका फल शासक या देश के राजा को ही भोगना पड़ता है, क्योंकि शासक या राजा की जिम्मेदारी होती है कि प्रजा या जनता कोई भी गलत काम न करें. अगर राजा अपना काम ठीक तरह से नहीं कर पाता है तो जनता, राजा का विरोध करने लगती है और ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर दोषी राजा को ही माना जाता है.

इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य ने बताया है कि यदि शिष्य गलत काम करता है तो उसका बुरा फल गुरु को ही मिलता है, इसलिए गुरु की ये जिम्मेदारी बनती है कि शिष्य को गलत रास्ते पर जाने से रोके और सही काम करने के लिए प्रेरित करे, क्योंकि अगर गुरु ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं हो पाते तो इसका दोष गुरु को ही लगता है.

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