पवित्र नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है. नगर के केंद्र में स्थित भगवान हनुमान के मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करते हैं. इस मंदिर की अपनी मान्यताएं है, जिसमें लोगों की गहरी आस्था है.
76 सीढ़ियों के सफर को तय करने के बाद भक्त पवनपुत्र के सबसे छोटे रूप के दर्शन करते हैं. ऐसी मान्यता है कि हनुमान यहां एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे. मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनि की प्रतिमा है. श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
हनुमानगढ़ी मंदिर तो भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या में ही है. यह मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के दाहिने तट पर एक ऊंचे टीले पर स्थित है. यहाँ तक पहुँचने के लिए 76 सीढियाँ चढ़नी होती हैं. यहाँ पर स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा केवल छह इंच लम्बी है, जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है.
अयोध्या स्थित अति प्राचीन हनुमान गढ़ी की स्थापत्य कला दिल्ली और आगरा के लाल किले की ही एक छवि है. इस विराट मन्दिर और इसके समीप स्थित इमली वन को लगभग तीन सौ साल पहले सुल्तान मंसूर अली ने बनवाया था. मंसूर अली लखनऊ और फैजाबाद का प्रशासक था.
संत अभयारामदास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण सम्पन्न हुआ. संत अभयारामदास निर्वाणी अखाडा के शिष्य थे और यहाँ उन्होंने अपने सम्प्रदाय का अखाड़ा भी स्थापित किया था. सुल्तान मंसूर अली ने 52बीघा भूमि हनुमान गढ़ी और इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई थी.
इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की एक कहानी है. एक बार सुल्तान का एकमात्र पुत्र बीमार पड़ा. प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तो सुल्तान ने थक हार कर आंजनेय के चरणों में माथा रख दिया. जब मंसूर अली ने हनुमान को खुदा कहकर पुकारा तो उन्हें बड़ी ग्लानि हुई, आखिर सुल्तान के खुदा और हनुमान के श्रीराम में क्या अन्तर था. हनुमान ने अपने आराध्य को ध्याया और सुल्तान पुत्र की धड़कनें प्रारम्भ हो गई.
भगवान राम के भक्त हनुमान की महिमा अपरंपार है. शिमला के झाकु हनुमान मंदिर में उनके चमत्कार को देख भक्तों का रेला लगा रहता है. हनुमान की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं.