केदारनाथ, अमरनाथ और अब कैलाश मानसरोवर यात्रा में लगातार आ रही बाधाओं को देखकर ऐसा लग रहा है कि भगवान शिव अपने भक्तों से रूठ गए हैं. केदारनाथ में कुदरत की तबाही ने कहर मचाया तो वहीं अमरनाथ यात्रा में समय से पहले पिघल रहा शिवलिंग भक्तों की चिंता का कारण बन गया है. और ऐसे में कैलाश मानसरोवर की यात्रा का स्थगित होना शिव भक्तों को दुखी कर रहा है.
क्या रद्द हो जाएगी कैलाश मानसरोवर की यात्रा?
देवभूमि उत्तराखंड में हुई तबाही के बाद अब कैलाश मानसरोवर यात्रा पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. आईटीबीपी ने गृह मंत्रालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि कैलाश यात्रा करना अभी सुरक्षित नहीं है. इस रिपोर्ट को आधार मानते हुए और उत्तराखंड में जमीन धंसने से और भारी बारिश से हुई तबाही को देखते हुए कैलाश मानसरोवर की यात्रा फिलहाल अगले डेढ़ महीनों के लिए स्थगित कर दी गई है लेकिन अगर मौसम की मार इसी तरह से बनी रही तो वार्षिक कैलाश मानसरोवर यात्रा को पूरी तरह से रद्द भी किया जा सकता है.
आईटीबीपी के मुताबिक सोबला के नीचे के तीन पुल कंज्योति तवाघाट और ऐलागाड़ बह गए हैं. पिथौरागढ़ और काली नदी के आसपास के पुल की हालत भी खराब है ऐसे में यात्रा को जारी रखना खतरे से खाली नहीं होगा.
इस साल पवित्र कैलाश पर स्थित भगवान शिव के दर्शन करने और मानसरोवर के पवित्र झील में स्नान के लिए तीर्थयात्रियों के कुल 18 जत्थे वहां जाने वाले थे, जिसमें केवल पहला जत्था ही रवाना हुआ था. लेकिन खराब मौसम के चलते उसे भी 2 दिन चीन के रास्ते में फंसे रहना पड़ा. बाकी दूसरे जत्थे से लेकर 10वें जत्थे की यात्रा डेढ़ महीनों के लिए स्थगित कर दी गई है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा की पूरी जिम्मेदारी आईटीबीपी यानी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की होती है जो भक्तों के यात्रा शुरू होने से लेकर उनके कैलाश पहुंचने तक उनके खाने-पीने, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाते हैं. लेकिन उत्तराखंड में हुई तबाही के बाद आईटीबीपी ने गृह मंत्रालय को सुझाव भेजे हैं. उन्होंने यहां के पैदल रास्तों को यात्रियों की आवाजाही के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त बताया है.
पहले ही केदारनाथ में मौसम ने कोहराम मचा रखा है और अमरनाथ में वक्त से पहले शिवलिंग पिघल रहा है. ऐसे में कैलाश मानसरोवर यात्रा को स्थगित करने की खबर ने भक्तों को दुखी कर दिया है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों के श्रद्धालु भी जाते हैं. और हर जत्थे को यात्रा पूरी करने में 22 दिन लगते हैं. इनमें से 14 दिनों का सफर भारतीय सरजमीं पर होता है, जबकि शेष 8 दिन तिब्बत में बिताए जाते हैं, जो चीन का इलाका है.