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महाकुंभ 2013: संगम तट पर महिला नागा साधुओं की अलग दुनिया

अब तक आपने नागा साधुओं के बारे में ही सुना होगा या फिर उन्हें कुम्भ में देखा होगा लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रयागनगरी इलाहाबाद में संगम तट पर लगे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले में पहली बार महिला नागा साधुओं की उपस्थिति लोगों के कौतूहल का विषय बनी हुई है. ये महिला साधु पुरुष नागाओं की तरह नग्न रहने के बजाए अपने तन पर एक गेरूआ वस्त्र लपेटे रहती हैं.

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अब तक आपने नागा साधुओं के बारे में ही सुना होगा या फिर उन्हें कुम्भ में देखा होगा लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रयागनगरी इलाहाबाद में संगम तट पर लगे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले में पहली बार महिला नागा साधुओं की उपस्थिति लोगों के कौतूहल का विषय बनी हुई है. ये महिला साधु पुरुष नागाओं की तरह नग्न रहने के बजाए अपने तन पर एक गेरूआ वस्त्र लपेटे रहती हैं.

नागा साधुओं के अखाड़ों में महिला संन्यासियों को एक अलग पहचान और खास महत्व दिया गया है, जिससे इस बात का अहसास होता है कि पुरुषों की बहुलता वाले इस धार्मिक आयोजन में अब महिलाओं को भी खासा महत्व दिए जाने की नई परम्परा शुरू हो रही है.

इन महिला संन्यासियों की अलग दुनिया है और उनकी अपनी नेता भी और साथ ही अपने संसाधन भी. उनके शिविर में शौचालयों की पर्याप्त व्यवस्था की गयी है और शिविर के बाहर चौबिसों घंटे पुलिसकर्मियों की तैनाती रहती है.

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महिलाओं के अखाड़े की नेता दिब्या गिरी हैं और वह बड़ी ही साफगोई से कहती हैं कि यह महिलाओं की एक अलग पहचान है. गिरी वर्ष 2004 में विधिवत तौर पर साधु बनी थीं. उन्होंने नई दिल्ली के एक प्रतिष्ठित संस्थान से मेडिकल टेक्निशियन की पढ़ाई पूरी की है. गिरी कहती हैं कि उनका ईष्टदेव भगवान दत्तात्रेय की मां अनूसुइया हैं और उन्हीं को ईष्ट मानकर आराधना की जाती हैं. ऐसा नहीं है कि महाकुम्भ की इस नगरी में बसे महिलाओं के अखाड़े में सिर्फ देशी महिलाएं ही हैं. इसमें कुछ विदेशी महिलाएं भी महिला नागा साधुओं की संगति में शामिल हुई हैं.

अखाड़े से जुड़ी एक महिला संन्यासी बताती हैं कि नागा महिला संन्यासियों का अलग शिविर तो बनाया गया है लेकिन अभी भी काफी कुछ नियंत्रण पुरुषों के हाथ में ही होता है. शिविर के छोटे से बड़े फैसले वही लेते हैं. इसको बदलने की जरूरत है. जूना के संन्यासिन अखाड़े में अधिकांश महिला साधु नेपाल से आयी हैं. इसकी खास वजह के बारे में यह महिला साधु बताती हैं कि नेपाल में ऊंची जाति की महिलाओं को दोबारा शादी समाज स्वीकार नहीं करता है और ऐसे में यह महिलाएं घर लौटने की बजाए साधु बन जाती हैं.

यह महिला साधु शिविर के बारे में बताती हैं कि महिलाओं के नग्न रहने पर सख्त मनाही है और खासतौर से शाही स्नान के दिन तो बिल्कुल नहीं और इसी के चलते ज्यादातर महिलाएं केवल एक गेरुआ कपड़ा ही लपेटे रहती हैं. वह कहती हैं कि महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की इजाजत कैसे दी जा सकती है. महिलाओं का नग्न रहना भारतीय संस्कृति का खुला उल्लंघन होगा.

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