केदारनाथ में पूजा शुरू होने में अभी एक महीने से ज्यादा वक्त बचा है. लेकिन इस बार जब मंदिर खुलेगा, तो उसके साथ आस्था का एक नया धाम भी खुलेगा. अब केदार में एक ऐसी शक्ति की पूजा शुरू होगी, जिसने महाविनाश में भगवान केदार के मंदिर की सुरक्षा की.
16 और 17 जून के उस हाहाकारी सैलाब को कोई कैसे भूल सकता है? उस विनाशकारी सैलाब ने पूरे केदारधाम को बर्बाद कर दिया था. मजबूत से मजबूत इमारतों को तिनके की तरह बहाता ले गया वो सैलाब. महज कुछ मिनटों में ही केदारधाम का नामोनिशान मिटा गया. लेकिन अगर इस तबाही के बीच भी केदारनाथ का मंदिर चट्टान की तरह खड़ा रहा तो इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं, एक चट्टान ही थी.
केदारनाथ मंदिर को एक बड़ी सी चट्टान ने नुकसान से बचा लिया. ये चट्टान मंदिर के ठीक पीछे है, जहां से 16 जून को सैलाब आया था. अब राज्य सरकार ने इस शिला को दिव्य शिला घोषित कर दिया है और 11 सितंबर से जब केदारनाथ का मंदिर खुलेगा तो इस दिव्य शिला की भी पूजा होगी. जाहिर है, तबाही के बाद जब मंदिर खुलेगा तो श्रद्धालुओं का मस्तक इस दिव्य शिला के आगे भी झुकेगा.
उत्तराखंड सरकार ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) से कहा है कि मंदिर के पीछे की इस दिव्य शिला को संरक्षित किया जाए. साथ संत समाज से अपील की गई है कि मंदिर की रक्षा करने वाली शिला को दिव्य शिला के तौर पर स्थापित किया जाए और दिव्य शिला के दर्शन किए बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाए.
केदारनाथ मंदिर में सर्वार्थ सिद्धि अमृत योग के दिन 11 सितंबर से एक बार फिर पूजा अर्चना शुरू होगी. जब भक्तों को पूरे केदानाथ का नया रूप नजर आएगा और उसी दिन से दिव्य शिला को भी पूजे जाने की तैयारी है. संत समाज ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. जिस दिव्य शिला को विज्ञान ने भी मंदिर का रक्षक माना, वो जल्द ही आस्था का नया केंद्र होगा. जो महाविनाश में भी सीना ताने खड़ा रहा, सैलाब के साथ आए बड़े से बड़े चट्टानों की चोट सहता रहा और जिसने भोले के मंदिर का बाल बांका भी नहीं होने दिया.
कहने वाले तो यह भी कह सकते हैं कि एक चट्टान ने सैलाब की दिशा बदल दी, इसमें चमत्कार कैसा? समुद्र की सतह से 3583 मीटर की ऊंचाई पर बना है केदारनाथ मंदिर. 16 और 17 जून को आए सैलाब में अगर धाम की तबाही के बावजूद नाथ का मंदिर बच गया तो इसकी वजह थी ये शिला ही थी.
उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर यानी यू-सैक ने राज्य सरकार को दी अपनी रिपोर्ट में तबाही का जो पूरा ब्योरा दिया है. उसका आधार बना है तबाही से पहले और तबाही के बाद की सैटेलाइट तस्वीरें. रिपोर्ट में बताया गया है कि केदारनाथ के ऊपर चोराबारी ग्लेशियर और कंपेनियन ग्लेशियर के अलावा रामबाड़ा तक यू आकार के कई ग्लेशियर हैं, जिनमें ग्लेशियर का मलबा यानी मोरेन डिपॉजिट भरा हुआ है. 16 और 17 जून की रात इस इलाके में इतना पानी गिरा कि मंदाकिनी की तीन धाराएं फूट पड़ीं. इन धाराओं से मलबा भी होकर निकला और तबाही मचाई गई.
दरअसल केदारनाथ का मंदिर जहां पर बना है, वो भी कभी मंदाकिनी का रास्ता ही हुआ करता था. जब ऊपर पहाड़ पर भारी बारिश हुई और ग्लेशियर के बर्फ पिघलने लगी तो मंदाकिनी अपने उसी पुराने रास्ते पर निकल पड़ी. लेकिन प्रचंड वेग से आ रही मंदाकिनी की धारा भी केदारनाथ मंदिर पहुंचकर बाएं मुड़ गई. और मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ.
उस दिन मंदाकिनी की पूरी वेग से आती लहरें इससे पहले कि मंदिर से टकरातीं, दिव्य शिला से टकराकर बाएं घूम गईं और लहरों के साथ गिर रहे बड़े-बड़े पत्थर इससे पहले कि मंदिर की दीवारों को ध्वस्त करके निकल जाते, उन्हें चट्टान ने रोक लिया.
आखिर इस चट्टान को चमत्कारी कहें भी तो क्यों नहीं, सैलाब की जिस तेज धार में 14 किलोमीटर तक पूरा पहाड़ बह गया उसकी धारा को एक चट्टान ने कैसे मोड़ दिया? भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में केदारनाथ सबसे ऊंचाई पर विराजमान हैं. साल के छह महीने यहां भक्ति, श्रद्धा और आस्था का सैलाब बहता है. लेकिन 16-17 जून को आई तबाही के सैलाब के बाद यहां सन्नाटा पसरा हुआ है.
सैलाब से ना सिर्फ केदारनाथ तबाह हो गया, बल्कि केदारनाथ जाने वाले तमाम रास्ते भी बर्बाद हो गए. केदारनाथ के लिए पैदल यात्रा 1900 मीटर की ऊंचाई पर गौरीकुंड से होती है, जो करीब 2500 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद रामबाड़ा से होते हुए केदारनाथ तक पहुंचती है. लेकिन 14 किलोमीटर तक के यात्रा मार्ग को सैलाब ने तहस नहस कर दिया.
जाहिर है इस चट्टान के आगे एक ऐसी प्रलयकारी धार हार गई, जिस पर तबाही ही तबाही लिखी हुई थी. जिस सैलाब ने पूरे केदारधाम को छह फीट से भी ऊंचे मलबे में दबा दिया, वो मंदिर की दीवार को छू तक नहीं पाई. कुदरत के कहर में दिखा ये ही चमत्कार अब आस्था का नया धाम होगा. नाथ की रक्षा करने वाली इस शिला की पूजा होगी.