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जयपुर के निकट घाट वाले बालाजी का भव्य मंदिर

दर्शन बजरंगबली के ऐसे रूप के जिन्हें भक्त पुकारते हैं घाट वाले बालाजी के नाम से. बजरंगबली का ये मंदिर जितना प्राचीन है उतना ही चमत्कारी भी.

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दर्शन बजरंगबली के ऐसे रूप के, जिन्हें भक्त पुकारते हैं घाट वाले बालाजी के नाम से. बजरंगबली का ये मंदिर जितना प्राचीन है उतना ही चमत्कारी भी. कहते हैं यहां आकर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है और किसी काम को शुरू करने से पहले घाट वाले बालाजी का आशीर्वाद ले लिया जाए तो उस काम में सफलता की पूरी गारंटी हो जाती है.

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जयपुर राजे रजवाड़ों का शहर है, जहां की सुंदरता को देखकर मन मोहित हुए बिना रह नहीं पाता. और सुबह-सवेरे जब सूरज की सुनहरी किरणें इस गुलाबी नगर पर पड़ती हैं तो ऐसा लगता है मानो पूरा शहर सोने के पानी में नहा उठा हो. इसी जयपुर से 20 किमी. दूर गलता तीर्थ के निकट पहाड़ियों पर बसा है घाट के बालाजी का भव्य मंदिर.

मान्यता है कि यहां बालाजी स्वयं प्रकट हुए थे और तब जयपुर के राज परिवार ने नगर बसाने से पहले बजरंगबली को स्थापित किया था. बालाजी मंदिर में पवनपुत्र की प्रतिमा दक्षिणमुखी है जिन्हें जीवन के सभी दुखों का नाश करने वाला माना जाता है. कहते हैं इनका आशीर्वाद लेने के बाद भक्तों को कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता मिलती है.

बजरंगबली भक्तों के कष्ट हरते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. भक्तों की ये आस्था अंजनिपुत्र के इस दरबार में आकर और अटूट हो जाती है. कोई भी नया काम शुरू करना हो, अपने नौनिहाल को भगवान का आशीर्वाद दिलाना हो या फिर बच्चे के जन्म से जुड़े संस्कार, भक्त अपने बच्चे को लेकर यहां जरूर आते हैं. खासकर मुंडन संस्कार के लिए बालाजी के इस धाम का अलग ही महत्व है. ऐसी मान्यता है कि घाट के बालाजी के यहां बच्चे का पहला बाल कटवाने से सभी कष्ट उसकी जिंदगी से कट कर गिर जाते हैं. राजा हो या रंक जयपुर और उसके आस पास के इलाकों के बच्चों का मुंडन संस्कार यहीं पर होता है. कहते हैं जयपुर को बसानेवाले राजा जयसिंह का भी मुंडन संस्कार इसी मंदिर में हुआ था.

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घाट के बालाजी का ये मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है जिन्हें जयपुर का कुल देवता माना जाता है. प्राचीन समय में मंदिर के आस-पास कई तालाब और पानी के कई घाट हुआ करते थे, जिसके कारण यहां बजरंगबली को घाट के बालाजी के नाम से पुकारा जाने लगा. मंदिर में सुबह 5 बजे बालाजी को स्नान कराकर उन्हें जगाया जाता है और पूरे श्रृंगार के बाद 7 बजे होती है पहली आरती. लेकिन दोपहर के दर्शनों का यहां विशेष महत्व माना गया है. ऐसी मान्यता है कि दिन में 12 बजे से शाम को तीन बजे तक घाट के बालाजी के दर्शन करनेवालों को बालाजी जल्द प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान दे देते हैं. रात 10 बजे आरती के बाद भोग लगाकर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं.

हर मंगलवार और शनिवार को बजंरगबली का चोला बदला जाता है. कहते हैं इस अवसर पर भी बजरंगबली की पूजा कर जो भी मन्नत मांगी जाती है वो जरूर पूरी होती है.

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