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बिल्वकेश्वर महादेव करते हैं हर मनोकामना पूरी

हरिद्वार के पास ही बिल्व पर्वत पर वो स्थान है जहां माता पार्वती ने कठोर तप कर पति रूप में कैलाश वासी औघड़दानी शिव को पाया था. हरिद्वार में शिव को एक बार नहीं दो-दो बार अपनी अर्द्धांगिनी मिली. पहले शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी रूप में पाया और फिर उन्हीं माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया.

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हरिद्वार के पास ही बिल्व पर्वत पर वो स्थान है जहां माता पार्वती ने कठोर तप कर पति रूप में कैलाश वासी औघड़दानी शिव को पाया था. हरिद्वार में शिव को एक बार नहीं दो-दो बार अपनी अर्द्धांगिनी मिली. पहले शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी रूप में पाया और फिर उन्हीं माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया.

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देव ऋषि‍ नारद की सलाह पर पार्वती ने बेलपत्रों से घिरे मनोरम बिल्व पर्वत पर आकर शिव की कठोर तपस्या की और भोलेनाथ को प्रसन्न कर दोबारा उनकी अर्द्धांगिनी बनीं. हरिद्वार से पश्चिम में हर की पौड़ी से थोड़ी ही दूरी पर ये पावन स्थान है, जहां प्रतिष्ठित बिल्वकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है. यहां शेषनाग के नीचे लिंग रूप में विराजे हैं बिल्वकेश्वर महादेव.

कहते हैं माता पार्वती यहां बेलपत्र खाकर अपनी भूख शांत किया करती थी, लेकिन जब पीने के लिए पानी की समस्या आयी तब देवताओं के आग्रह पर स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की जलधारा प्रकट की. यह आज बिल्वकेश्वर मंदिर से महज 50 कदम की दूरी पर गौरी कुंड के नाम से प्रसिद्ध है. मान्यता है कि तपस्या के दौरान माता पार्वती इसी गौरी कुंड में स्नान किया करती थी और इसी कुंड का पानी पिया करती थी.

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बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर, भोलेभंडारी, जटाधारी भगवान शिव शंकर का धाम है. यह माता पार्वती की वो तपोस्थली है जहां की गई आराधना और तपस्या से शिव शंकर जल्द प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं. कहते हैं यहां आकर श्रद्धा से भोलेनाथ को स्मरण करने भर से वो प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को देते हैं मनचाहा वरदान. जिन कुंवारी कन्याओं का विवाह न हो रहा हो या फिर उनके विवाह में किसी भी प्रकार की अड़चन आ रही हो, बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में आकर भोले भंडारी का अभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने भर से विवाह में आ रही परेशानियां दूर हो जाती है, साथ ही कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है.

मोक्षदायिनी गंगा की पवित्र लहरों के स्पर्श मात्र से जीवन तर जाता है, समस्त पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है. शिव की जटाओं से निकली गंगा के इस पवित्र जल में स्नान कर भक्त भोले के दरबार में पहुंचते हैं. जहां मां पार्वती की तप से दिव्य हुई धरा पर बरसती है भोलेभंडारी की कृपा और मिलता है समस्त कामनाओं के पूर्ण होने का वरदान. बेलवृक्षों के इस मनोरम वन में बिल्वकेश्वर महादेव विराजते हैं.

बिल्वकेश्वर महादेव के इस मंदिर में प्रतिदिन दो बार आराधना का विधान है. जिसकी शुरुआत सुबह 5 बजे हो जाती है. प्रात काल सबसे पहले गौरी कुंड के पवित्र जल से शिवलिंग का जलाभिषेक होता है, फिर नाग प्रतिष्ठित कर शिव का श्रृंगार किया जाता है. शिव के इस दुर्लभ लिंग पर दर्शन-पूजन करने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि बिल्वकेश्वर महादेव का पंचामृत अभिषेक कर उन्हें भांग, धतूरा, बेलपत्र और फूल चढ़ा दिए जाएं तो भोलेनाथ मनोकामना जल्द पूरी कर देते हैं. कहते हैं बिल्वकेश्वर महादेव पर मात्र बेलपत्र चढ़ाने भर से 1 करोड़ साल तक स्वर्ग में निवास का मौका मिलता है.

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मान्यता है कि सावन में शिव हरिद्वार में निवास करते हैं. तभी तो भोले के असख्य भक्तों का यहां पूरे महीने तांता लगा रहता है और जो सावन महीने में यहां नहीं आ पाते वो शिव के प्रिय सोमवार को यहां आकर पूजा अभिषेक करते हैं. बिल्वकेश्वर महादेव के पास ही प्रतिष्ठित इस चमत्कारी गौरी कुंड में स्नान का महत्व बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में आराधना से कम नहीं है और ये महत्व मकर संक्रान्ति पर और भी बढ़ जाता है.

जिस तरह भक्त और भगवान का रिश्ता जन्म-जन्मांतर का है उसी तरह जन्म-जन्मांतर से भोलेनाथ से बंधे हैं नंदी महाराज. भोलेनाथ तक पहुंचाने वाली हर मनोकामना यहां भी इन्हीं के कान में कहनी होती है. महादेव के इस धाम में दिन की अंतिम आरती का विशेष महत्व होता है, जो यहां 6 बजे संपन्न होती है. पुजारीगण चंदन, पुष्प और बलेपत्र आदि से बिल्वकेश्वर महादेव का श्रृंगार करते हैं और फिर धूप-बत्ती से आरंभ होती है बिल्वकेश्वर महादेव की आराधना, जिससे बिल्व पर्वत का सारा वातावरण शिवमय हो जाता है.

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