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ये है होलिका के मंगेतर का मंदिर, जानिये कैसे निकलती है हर साल बारात

भगवान के श्राप से प्रहलाद को गोद मे लेकर होलिका जल कर राख हो गई . ये बात सभी जानते हैं, लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी की होलिका की मौत के बाद उसका मंगेतर तह उम्रः कुवारा रहा. होलिका के मंगेतर की हसरत पूरी करने के लिए एक ख़ास वर्ग के लोग आज भी धूमधाम से उसकी बारात निकालते हैं. आप भी देख‍िये कैसे निकलती है बारात...

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होलिका के मंगेतर की फोटो
होलिका के मंगेतर की फोटो

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भगवान के श्राप से प्रहलाद को गोद मे लेकर होलिका जल कर राख हो गई . ये बात सभी जानते हैं, लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी की होलिका की मौत के बाद उसका मंगेतर तह उम्रः कुवारा रहा. होलिका के मंगेतर की हसरत पूरी करने के लिए एक ख़ास वर्ग के लोग आज भी धूमधाम से उसकी बारात निकालते हैं.

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रायपुर में होलिका के मंगेतर का मंदिर है, जो सिर्फ फागुन के महीने मे ही खुलता है, फिर साल भर उसके पट बंद हो जाते हैं. मंदिर के पट खुलने और बंद होने की एक खास परम्परा यहां निभाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं को बच्चे नहीं होते, ऐसे दंपत्ति इस मंदिर में पूजा पाठ करते हैं तो उनकी मनोकामना पूरी होती है. भले ही यह बात आस्चर्यजनक लगती हो, पर यह बात सत्य मानी जाती है. सैकड़ों लोग हैं जो इसकी तस्दीक करते हैं.

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होलाष्टक के मौके पर नाथूराम की बारात धूमधाम के साथ निकाली जाती है. होलिका दहन से तीन चार दिन पहले खास तिथि और मौके पर नाथूराम के मंदिर का पट खुलता है. इसके बाद बतौर आरती कई तरह की रस्म अदायगी होती है. उनके दरबार में रोज रात महफ़िल सजती है. इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हो कर फाग गाते हैं. खूब हंसी ठिठोली भी होती है.

इसके बाद तय समय आम शादी ब्याह में निकलने वाली बारात की तरह नाथूराम की बारात निकलती है. इसमें शामिल लोग झूम कर नाचते गाते हैं. लोग बताते है कि आतिशबाजी और बाजे गाजे से निकलने वाली ये बारात किसी आम शक्श की नहीं बल्कि इतिहास के पन्नो मे दर्ज उस शक्श की होती है, जो होलिका के साथ वैवाहिक जीवन की डोर मे बंधना चाहता था. लेकिन अपने विवाह से चंद दिनों पहले उसे होलिका को उसका वो वरदान भारी पड़ गया, जो उसे ब्रम्हा ने दिया था.

प्रह्लाद को गोद मे लेकर होलिक अग्नि मे बैठ गई, ताकि वो उसे मार सके. लेकिन हुआ उल्टा, भगवान के श्राप से होलिका खुद जलकर खाक हो गई. इस श्राप से नाथूराम की होलिका से शादी की हसरत अधूरी की अधूरी रही. लिहाजा नाथूराम के भक्त उस अधूरी हसरत को पूरी करने के लिए फागुन के महीने मे उनकी बारात निकालते है. ये शादी सिर्फ नाच गाना और मौज मस्ती का हिस्सा ही नहीं होती बल्कि सालो पुरानी एक ऐसी परमपरा है जो आज भी निभाई जा रही है.

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राजस्थान के मारवाड़ इलाके के लोग खासतौर पर नाथूराम के मंदिर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. इस मौके पर निभाई जाने वाली रस्म अदायगी में वो बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. इस मंदिर के पुजारी जीवन लाल के मुताबिक कई पीढ़ियों से यह परम्परा चली आ रही है. वो बताते है कि नाथूराम के भक्त पुरे देश में फैले हुए हैं. 

रायपुर में नाथूराम का मंदिर कई साल पुराना है. ये मंदिर साल में एक बार फागुन की एकादशी को खुलता है और पूर्णिमा में इसके पट बंद हो जाते हैं. मंदिर के खुलते ही यहां अनोखी रस्म अदायगी शुरू हो जाती है. फागुन की एकादशी के दिन, आरती के बाद दुल्हे का श्रृंगार कर बाकायदा बारात निकाली जाती है. गुलाल-अबीर लगाकर लोग एक दूसरे को शादी की मुबारकबाद देते है. इस बारात में शामिल होकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं. बारातियों को बाकायदा रिशेप्शन दिया जाता है. हलवा पुड़ी से लेकर तमाम स्वादिस्ट व्यंजन उन्हें परोसे जाते हैं.

नाथूराम पर लोगों की काफी आस्था और विश्वास है. कोई उन्हें भगवान शंकर के रूप में पूजता है तो कोई महान संत के रूप में. वैसे तो हर धर्म और संप्रदाय के लोग नाथूराम के भक्त है, लेकिन उन्हें पूजने वालों में राजस्थान के मारवाड़ के लोग ज्यादा हैं. मंदिर से निकलने वाली नाथूराम की बारात का यहां 187 वर्षों का इतिहास आज भी मौजूद है. इस मंदिर के 200 साल पुरे होने में सिर्फ 13 वर्ष ही बाकी हैं.

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