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बड़ी महंगाई है, भगवान को अर्पित करें क्‍या-क्‍या...

आप चाहते तो हैं कि भगवान की पूजा-पाठ करने के दौरान उन्‍हें हर दिन बेहद सुंदर, ताजा और एकदम सुगंधित फूल अर्पित किए जाएं. परंतु इन्‍हें जुटाने में समस्‍याएं कई हैं.

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बाल कृष्‍ण का मनमोहक रूप...
बाल कृष्‍ण का मनमोहक रूप...

आप चाहते तो हैं कि भगवान की पूजा-पाठ करने के दौरान उन्‍हें हर दिन बेहद सुंदर, ताजा और एकदम सुगंधित फूल अर्पित किए जाएं. परंतु इन्‍हें जुटाने में समस्‍याएं कई हैं.

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फूल खरीदने जाएं, तो पता चलेगा कि ये भी महंगाई की चोट खाए बैठे हैं. इस मंडी से उस मंडी, उस मंडी से इस मंडी तक आते-आते इनकी पंखुडि़यों पर तनाव और थकान के बहुतेरे निशान पड़ गए हैं. जब डालियों पर झूम रहे थे, तब तो खुशबू की भी कोई सीमा न थी. पर जैसे ही सौदागरों के हाथों में आए, खुशबू भी कम हो गई.

अगरबत्ती खरीदने जाएं, तो भी झमेला. कोई ब्रांड नहीं जंचता, कोई पॉकेट में नहीं समा पाता. जो पॉकेट में समाता, उसमें ‘गंध’ तो है, पर ‘सु’ गायब. देवी-देवताओं पर छिड़कने के लिए घर में गंगाजल खोजें, तो वह भी नदारद. आखिर एक छोटे-से पात्र में सालभर से रखा गंगाजल कब तक चलेगा...?

मतलब यह कि हम अपने इष्‍टदेव को जो चीजें भौतिक रूप से अर्पित करना चाहते हैं, उसमें कई तरह की समस्‍याएं हैं. धन की कमी, वक्‍त की कमी, उपलब्‍धता की समस्‍याएं आदि. आखिर इसका निदान क्‍या हो? भगवान को खुश किया जाए तो कैसे?

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उपाय बिलकुल सीधा और सरल है. हमारे शास्‍त्रों में मानस पूजा की बहुत महिमा गाई गई है. मानस पूजा का मतलब है मन ही मन, ध्‍यानपूर्वक भगवान की स्‍तुति करना, मन से उन्‍हें फूल, चंदन, इत्र, वस्‍त्र, नैवेद्य आदि अर्पित करना. यहां यह स्‍पष्‍ट कर देना जरूरी है कि मानस पूजा किसी लाचारी में अपनाई जाने वाली पूजा-पद्धति नहीं है. शास्‍त्रों में ऐसा उल्‍लेख मिलता है कि इस तरह की पूजा भगवान को भी सबसे ज्‍यादा प्रिय है. भगवान किन्‍हीं सांसारिक चीजों के नहीं, बल्कि भाव के भूखे होते हैं. भक्‍त और प्रभु के बीच भावनाओं के जरिए ही संबंध प्रगाढ़ होता है.

मुद्गलपुराण में कहा गया है:
कृत्‍वादौ मानसीं पूजां तत: पूजां समाचरेत्.

इसमें बताया जा रहा है कि अगर बाहरी चीजों से पूजा करनी ही हो, तो भी पहले मानस पूजा की जानी चाहिए.

सबसे अच्‍छी बात तो यह है कि मानस पूजा में आपकी सोच की कोई सीमा नहीं होती. आप सुंदर से सुंदर, ताजा व सुगंधित फूल अपने इष्‍ट देव को अर्पित कर सकते हैं. यहां न तो फूलों की कीमत आपके मन को मलिन करती है, न ही इसके बासी पड़ने की आशंका सताती है. इसी तरह गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक, कहीं का भी गंगाजल सेकेंडों में उपलब्‍ध हो जाता है, वह भी जितना चाहें, उतना. इसी तरह अन्‍य कल्पित चीजें आपको हमेशा तैयार मिलती हैं.

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मानस पूजा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि जितनी देर साधक मन से इन कामों में जुटा रहता है, उतनी देर वह संसारिक चीजों से कटा रहता है. इस तरह की पूजा से भगवान तो बहुत-बहुत तुष्‍ट होते ही है, साधक भी ध्‍यान की अवस्‍था में आ जाता है. आखिर पूजा-अर्चना का उद्देश्‍य भी तो यही है.

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