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जानेंं 12 साल में आयोजित होने वाले इस कुंभ का महत्व

कुंभ के दौरान पड़ने वालीं तिथियों के शुभ योग में धरती पर अमृत छलका था. इस महापर्व के मौके पर लाखों श्रद्धालु पूरी आस्था के साथ संगम में गोते लगाकर पुण्य प्राप्त‍ि की कामना करते हैं.

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कुंभ महापर्व का विशेष महत्व है
कुंभ महापर्व का विशेष महत्व है

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कुंभ महापर्व के पवित्र महत्व और उत्तम परिणामों की वजह से हिंदू धर्म में इसकी बहुत मान्यता है. उज्जैन सिंहस्थ कुंभ भी राशियों और ग्रहों के विशेष योग में पड़ता है. कुंभ की पवित्रता और महिमा का बखान वेदों और पुराणों में भी है.

जानें आस्था के इस महान केंद्र की विशेषताएं और महापर्व से जुड़ी पौराणिक कथा...

उज्जैन सिंहस्थ का योग और कुंभ के महत्व :
- कुंभ का आयोजन 12 साल में एक बार होता है. उज्जैन सिंहस्थ के लिए सिंह राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य और तुला राशि में चंद्र के ग्रह-योग माने जाते हैं. इस विशेष पर्व पर यहां शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर इंसान अपने पापों से मुक्त‍ि पाकर पुण्य कमाता है.

- विष्णु पुराण में कुंभ के महानता में लिखा गया है कि कार्तिक मास के हजारों स्नानों का, माघ के सौ स्नानों का अथवा वैशाख मास में एक करोड़ नर्मदा स्नानों का जो फल प्राप्त होता है, वही फल कुंभ पर्व के एक स्नान से मिलता है. इसी प्रकार हजारों अश्वमेघ यज्ञों का फल या सौ वाजपेय यज्ञों का फल और पूरी धरती की एक लाख परिक्रमाएं करने का जो फल मिलता है, वही फल कुंभ के केवल एक स्नान का होता है. इस तरह हमारे वेदों, पुराणों और शास्त्रों में कुंभ का महत्व बताया गया है.

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- अथर्ववेद के अनुसार - महाकुम्भ बारह वर्ष के बाद आता है, जिसे हम कई बार प्रयागादि तीर्थों में देखा करते हैं. कुम्भ उस समय को कहते हैं जब आकाश में ग्रह-राशियों का अद्भुत योग देखने को मिलता है.

- यजुर्वेद में बताया गया है कि कुंभ मनुष्य को इस लोक में शारीरिक सुख देने वाला और हर जन्म में उत्तम सुखों को देने वाला है.

- अथर्ववेद में ब्रह्मा ने कहा है कि हे मनुष्यों! मैं तुम्हें सांसारिक सुखों को देने वाले चार कुंभ पर्वों का निर्माण कर चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में प्रदान करता हूं.
वेदों और पुराणों में बताए गए महाकुम्भ के महत्व के अनुसार कुंभ हमारी संस्कृति का अमृत महापर्व है जो ग्रह-राशियों के योग से उज्जैन में शिप्रा के किनारे भी मनाया जाता है.

कुंभ की कथा -
कुंभ के आयोजन के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. सबसे अधिक प्रचलित मंथन कथा है. इसके अनुसार देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन करने के बाद अमृत कलश प्राप्त किया. अमृत को राक्षसों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी रक्षा का दायित्व बृहस्पति, चन्द्रमा, सूर्य और शनि को सौंपा था.
देवताओं के प्रमुख इंद्र पुत्र जयंत जब अमृत कलश लेकर भागे, तब दानव उनके पीछे दौड़े. अमृत को पाने के लिए देवताओं और दानवों में भयंकर संग्राम हुआ. कहा जाता है कि यह संग्राम 12 दिन तक चला. चूंकि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर माना जाता है तो इस तरह यह युद्ध बारह सालों तक चला.
अमृत कलश पाने के लिए इस युद्ध में अमृत की बूंदें धरती पर चार स्थानों - हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में छलकीं. पौराणिक मान्यता है कि अमृत कलश से छलकीं बूंदों से इन चार स्थानों की नदियां - गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा अमृतमयी हो गईं.
अमृत बूंदें छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चन्द्र, गुरु की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, उन्हीं विशेष अवसरो पर कुंभ पर्व आयोजित किए जाते हैं. इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के ने अतिरिक्त प्रयास किए. इसी वजह से इन ग्रहों की विशेष स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परंपरा है.

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