साईं बाबा के जीवन में उनके गुरु का क्या स्थान था, इसे उनकी गुरु की निशानियों को देखकर बखूबी समझा जा सकता है. साईं ने अपनी गुरु की निशानियों को भी बेदह संभालकर रखा था. बाबा के गुरु की खड़ाऊं, उनकी चिलम और माला को बाबा के समाधि लेने के बाद आज भी संभाल कर रखा गया है.
साईं के दर से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता. साईं के दर पर जाने के बाद भक्तों की कोई मुराद कभी अधूरी नहीं रहती और बाबा के ये चमत्कार दिखाता है उनका बटुआ. समाधि लेने से पहले भी बाबा इसी बटुए में हाथ डालकर अपने भक्तों को सोने-चांदी के सिक्के देकर उनके दुखों को दूर किया करते थे. साईं बाबा की इस अनमोल धरोहर को आज भी संभाल कर रखा गया है.
शिरडी के साईं बाबा की शरण से आजतक कोई झोली खाली नहीं लौटी. क्या अमीर, क्या गरीब हर कोई साईं के दर से हंसी खुशी ही लौटा है. साईं का नाम सुनते ही बाबा के चमत्कार आंखों के सामने घूमने लगते हैं. कपड़े के उस बटुए के चमत्कार की कहानी आज भी शिरडी के हर भक्त की जुबां पर है. इस बटुए की माया को आजतक कोई नहीं समझ पाया कि कैसे कोई फकीर अपनी शरण में आने वाले भक्तों को इस बटुए से निकालकर सोने और चांदी के सिक्के बांटता था और वो कभी खाली नहीं होता था.
कपड़े के इस चमत्कारी बटुए को साईँ बाबा ने उस वक्त के उनके सबसे करीबी सेवक तात्या पाटील और बायजा मां को 1918 में समाधि लेने से पहले सिक्कों के साथ दान कर दिया था. आज भी वो सिक्के इस बटुए के साथ सही सलामत हैं.
पाटील परिवार ने जब से इस बटुए का रख रखाव शुरू किया तब से उनके परिवार पर लक्ष्मी के विशेष कृपा रही है. समाधि से पहले साईं बाबा हर रोज इसी बटुए से सैंकड़ों सिक्के अपने भक्तों को दान किया करते थे और तो और उस समय अंग्रेज शासकों ने साईं बाबा के इस चमत्कार की जांच के आदेश भी दिए थे, लेकिन चमत्कार आज भी एक पहेली बना हुआ है. आज भी साईं बाबा की शक्ति का ही कमाल है कि हर भक्त उनके दरबार से अपनी खाली झोली भरकर ले जाता है.
हफ्ते के सात दिनों में गुरुवार का दिन बाबा के नाम पर है. शिरडी में आज भी हर गुरुवार साईं की पालकी निकलती है, जिसके दर्शन करने लिए हजारों भक्तों की भीड़ लगती है. कहते हैं जिसने भी बाबा की इन निशानियों के दर्शन कर लिए उन्हें साक्षात साईं के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है.
शिरडी के साईं बाबा हर गुरुवार को अपने भक्तों की समस्त तकलीफों को अपने साथ ले जाते हैं और बदले में मन की मुरादों से भर देते हैं भक्तों की झोली. ये सिलसिला तब से चला आ रहा है, जब शिरडी में साईं बाबा साक्षात सबके सामने बैठकर दर्शन दिया करते थे.
द्वारका माईं से चावड़ी तक आज भी हर गुरुवार को पालकी में साईं खुद विराजते हैं. साईं पहले साक्षात दर्शन देकर भक्तों के दुख दर्द दूर करते थे और अब साईं का वही चमत्कार उनकी छड़ी और खड़ाऊं करते हैं.
साईं के इसी दिव्य रूप के दर्शनों के लिए गुरुवार उनके दरबार में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं. 1918 में सामधि लेने से पहले बाबा इसी लाठी से छूकर भक्तों की सारी तकलीफें दूर किया करते थे और जब भक्तों के दुख से बाबा खुद निढ़ाल हो जाते तो अपनी चिलम जला लेते थे.
आज भी साईं की पालकी जब चावड़ी पहुंच जाती है तो उनको चिलम चढ़ाई जाती है. ये चिलम सिर्फ श्रद्धा और आस्था को चढ़ावा ही नहीं साईं के चमत्कारों से भी जुड़ी हुई है. साईं की पालकी की इन खास रस्मों के दर्शन करने की मनाही किसी को भी नहीं.