करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है. मान्यता है कि इसे रखने से सुख-सौभाग्य मिलता है और दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रहता है.
इस व्रत को शाम के समय चंद्र दर्शन के बाद खोलने की परंपरा है. और भी परंपरा है कि करवा चौथ का चांद हमेशा छलनी से ही देखा जाता है.
क्यों देखते है छलनी से
इस व्रत की कथा के अनुसार, एक बार किसी बहन को उसके भाइयों ने भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक दिखाकर भोजन करवा दिया. इस तरह उसका व्रत भंग हो गया. इसके पश्चात उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवा चौथ आया तो उसने विधिपूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्त हुई.
उस करवा चौथ पर कन्या ने हाथ में छलनी लेकर चांद के दर्शन किए थे.
छलनी का ये रहस्य
छलनी का एक रहस्य यह भी है कि कोई छल से उनका व्रत भंग न कर दे, इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है. करवा चौथ का व्रत करने के लिए इस दिन व्रत की कथा सुननी चाहिए. उस समय एक चौकी पर जल का लोटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी-रुपये आदि रखने चाहिए.
कैसे करें पूजा
पूजन में रोली, चावल, गुड़ आदि सामग्री भी रखें. फिर लोटे व करवे पर स्वस्तिक बनाएं. दोनों पर 13 बिंदियां लगाएं. गेहूं के तेरह दाने हाथ में लेकर कथा सुनें. इसके बाद सास का आशीर्वाद लें और भेंट दें.
चंद्रमा उदय होने के बाद उसी लोटे के जल तथा गेहूं के तेरह दाने लेकर अर्घ्य दें. रोली, चावल और गुड़ चढ़ाएं. सभी रस्में पूरी होने के बाद भोजन ग्रहण करें.