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बदल गया खजुराहो!

अपनी मिथुन मूर्तियों और वास्तुशिल्प के लिए मशहूर खजुराहो के मंदिरों के बारे में अब वहीं के लोगों की राय बदल गई दिखती है.

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खजुराहो के मंदिर
खजुराहो के मंदिर

अपनी मिथुन मूर्तियों और वास्तुशिल्प के लिए मशहूर खजुराहो के मंदिरों के बारे में अब वहीं के लोगों की राय बदल गई दिखती है. दूर-दराज के इस परंपरावादी इलाके के बहुत-से स्थानीय लोग अक्सर यह कहते हुए नाक-भौं सिकोड़ते रहते थे कि चंदेल राजाओं ने पता नहीं क्या सोचकर ऐसी मूर्तियां गढ़वाईं. 16 साल से यहां के मंदिरों के गाइड श्यामलाल रजक बताते हैं कि पिछले पखवाड़े यहां हुई मोरारी बापू की कथा ने वह काम कर दिखाया जो तमाम उपायों से संभव न हुआ था. ''काम दर्शन को आधार बनाकर तमाम संदर्भों के साथ नौ दिन तक उन्होंने ऐसी कथा कही कि इन मंदिरों के बारे में लोगों की धारणा बदल गई. उन्हें लगा कि कोई अध्यात्मवेत्ता कह रहा है तो जरूर इसमें कोई बड़ी बात होगी.”

रजक तो बताते हैं कि लंबे समय से गाइड होने के बावजूद यहां के मंदिरों और मूर्तियों के संबंध में कई पर्यटकों के जवाब वे भी नहीं दे पाते थे. ''बाहर कामदेव, अंदर महादेव, इतना कहकर बापू ने जैसे हमें एक सूत्र दे दिया. शार्दूल (सिंह) की आकृति अगर उत्तेजक मूर्तियों के मुंह के पास हो तो वह मन और पैरों के पास हो तो बुद्धि का प्रतीक होती है. इस संदर्भ में बापू का कहना था कि मन का ‘काम’ बुद्धि में चला जाए तो आदमी जानवर हो जाता है. हमारे लिए रहस्य खुल गए.”

मोरारी बापू ने खुद कहा कि काम दर्शन पर बोलने के लिए खुद को तैयार करने में उन्हें 55 साल लगे. लेकिन बोले तो सीधे खजुराहो में. तभी तो जिज्ञासा का आलम यह था कि उन्हें सुनने के लिए देश भर के कोने-कोने से हजारों लोगों के अलावा सैकड़ों प्रवासी भारतीय भी वहां जा पहंचे. और तो और, मशहूर अभिनेत्री रहीं आशा पारेख और योगगुरु रामदेव ने भी बैठकर तसल्ली से काम दर्शन के बारे में सुना. अब खजुराहो के लोगों के लिए भी पहले जैसा नहीं रहा खजुराहो.

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