हिमाचल प्रदेश के कुल्लू कस्बे में एक सप्ताह तक चलने वाले दशहरा उत्सव के लिए 200 से अधिक 'देवी-देवता' पहुंच गए हैं. देशभर में चली दुर्गापूजा के अंतिम दिन शुक्रवार से यहां दशहरा उत्सव की शुरुआत हुई. शताब्दी पुराने कुल्लू दशहरा का शुभारंभ विजया दशमी को हुआ. विजया दशमी के साथ ही देशभर में 10 दिनों तक चले दशहरा का समापन हो जाता है.
उत्सव के मुख्य आयोजक और उपायुक्त राकेश कंवर ने बताया, '200 से अधिक देवी-देवता पहुंच चुके हैं और अगले कुछ दिनों में और के पहुंचने की उम्मीद है.' देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले का दहन नहीं किया जाता. व्यास नदी के तट पर 9 अक्टूबर को लंकादहन कार्यक्रम के तहत जमा हुए देवता 'बुराई के साम्राज्य' का विध्वंस करेंगे.
मुख्य देवता भगवान रघुनाथ के रथ के साथ अन्य देवी-देवताओं की पालकियां ढोल नगारों और शहनाई की ध्वनि के बीच यहां के ऐतिहासिक धौलपुर मैदान में पहुंची. हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान रघुनाथ के रथ को खींचा. राज्यपाल उर्मिला सिंह भी उत्सव में शामिल हुईं. इस उत्सव की शुरुआत 1637 में तब हुई जब राजा जगत सिंह कुल्लू पर शासन करते थे.
दशहरा के दौरान भगवान रघुनाथ के सम्मान में परंपरा निभाने के लिए उन्होंने सभी स्थानीय देवों को कुल्लू आमंत्रित किया था. तभी से प्रतिवर्ष सैकड़ों गांवों से पालकियों में प्रतिमाएं यहां पहुंचती हैं. राजे-रवाड़ों का जमाना गुजरने के बाद से स्थानीय प्रशासन देव प्रतिमाओं को उत्सव में आमंत्रित करता है.