scorecardresearch
 

मां बमलेश्वरी देंगी आशीर्वाद, शत्रु होंगे परास्त

मां बमलेश्‍वरी छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में खूबसूरत हरी भरी वादियों और झील के किनारे विराजती हैं. उन्हें मां बगलामुखी का रूप माना जाता है. मां अपने भक्तों को विजय का वरदान देती हैं. साल के दोनों नवरात्रों में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और मां के दर्शन कर भक्‍त खुद को धन्य करते हैं.

Advertisement
X
मां बमलेश्‍वरी का मंदिर
मां बमलेश्‍वरी का मंदिर

मां बमलेश्‍वरी छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में खूबसूरत हरी भरी वादियों और झील के किनारे विराजती हैं. उन्हें मां बगलामुखी का रूप माना जाता है. मां अपने भक्तों को विजय का वरदान देती हैं. साल के दोनों नवरात्रों में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और मां के दर्शन कर भक्‍त खुद को धन्य करते हैं.

Advertisement

डोंगरगढ़ में जमीन से करीब 2 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजती है मां बमलेश्वरी. मां की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से भक्तों का जत्था माता के इस धाम में पहुंचता है. कोई रोप वे का सहारा लेकर तो कोई पैदल ही चलकर माता के इस धाम में अपने आस्था के फूल चढ़ाने पहुंचता है.

मंदिर में प्रवेश करते ही सिंदूरी रंग में सजी मां बमलेश्वरी का भव्य रूप बरबस ही भक्तों को आपनी ओर खींच लेता है. साल के दो नवरात्रों चैत्र और शारदीय नवरात्रों में तो यहां की छटा देखते ही बनती है. लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त घंटों यहां मां की एक झलक भर पाने का इंतजार करते हैं.

प्राचीन काल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था. कहते हैं यहां के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत-कला के प्रेमी थे. राजा कामसेन के ऊपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे. एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया.

Advertisement

माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए वह हार उसको पहना दिया. इससे राजा ने अपने को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया. इसके बावजूद कामकंदला और माधवानल छिप-छिपकर मिलते रहे. एक बार माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गए और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही.

राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया. राजा के इनकार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया. दोनों वीर योद्धा थे और एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का. दोनों ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया तो एक ओर से महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने पहुंचे. युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और कामकंदला और माधवानल को मिलाकर वे दोनों अंतर्ध्यान हो गए.

वही विमला मां आज बमलेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी हैं. अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्भ में समेटे ये पहाड़ी अनादिकाल से जगत जननी मां बमलेश्वरी देवी की सर्वोच्च शाश्वत शक्ति का साक्षी है. मां बमलेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है साथ ही विजय का वरदान मिलता है. मुश्किलों को हर कर मां अपने भक्तों को मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाती हैं.

Advertisement

मां बमलेश्वरी के दरबार में दो पहर होने वाली आरती का महत्व भी कुछ कम नहीं है. घंटी-घडियालों के बीच आरती की लौ के साथ श्रद्धालुओं की भीड़, माता के गीतों को गाते-गुनगुनाते हैं. मां बमलेश्वरी के मंदिर में भक्ति का अलौकिक नजारा देखने वालों को बांध लेता है, भक्ति के रस में डुबो देता है.

मां बमलेश्वरी बगलामुखी का रूप हैं तो वहीं हिमाचल के कांगड़ा में सुंदर पहाड़ियों के बीच साक्षात विजारती हैं मां बगलामुखी. 10 महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी के इस दरबार में भगवान राम ने तपस्या कर रावण पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद पाया था.

मां बगलामुखी के दरबार में हवन करने की विधि बेहद अनूठी है क्योंकि यहां हवन सामग्री में लाल मिर्च का इस्‍तेमाल किया जाता है. कहते हैं लाल मिर्च को शत्रु नाशक माना जाता है, जिसका पूजा में इस्तेमाल करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है.

Advertisement
Advertisement