नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की अर्चना की जाती है. वाराणसी के अलईपुर क्षेत्र में मां शैलपुत्री का मंदिर है. मान्यता है कि नवरात्र के पहले दिन इनके दर्शन से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है. वैवाहिक बाधा हो या पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा, मां अपने दर पर आने वाले हर भक्त की आकांक्षा पूरी करती हैं.
मां शैलपुत्री की कहानी
मां शैलपुत्री के इस मंदिर के बारे में एक कथा भी प्रचलित है. बताया जाता है कि मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं. माता एक बार किसी बात पर भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश से काशी आ गईं और जब भोलेनाथ उन्हें मनाने आए तो उन्होंने महादेव से आग्रह किया कि यह स्थान उन्हें बेहद प्रिय लगा. तभी से माता अपने दिव्य रूप में यहां विराजमान हैं.
इस बार शुभ नहीं है संयोग
मां शैलपुत्री के दिव्य स्वरुप पर गौर करें तो उनके एक हाथ में त्रिशूल है एक हाथ में कमल. मां की सवारी वृषभ की है. माता के दर्शन को आया हर भक्त उनके दिव्य रूप के रंग में रंग जाता है. ज्योतिषियों की मानें तो इस बार देवी का आगमन शुक्लपक्ष में हुआ है जो कि शुभ नहीं है. इसके बावजूद शनिवार को माता के मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली.
मां शैलपुत्री के इस मंदिर में दिन में तीन बार आरती होती है और प्रसाद में इन्हें नारियल के साथ सुहाग का सामान चढ़ाया जाता है.