प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 का हर पल अपने आप में खास है. यहां की शामें तो मानो जादुई होती हैं. जैसे ही सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ता है, कुंभ नगरी का रूप बदलने लगता है. चारों ओर रोशनी के फव्वारे फूट पड़ते हैं. दिन की तेज धूप की जगह एक शीतल और रंगीन चादर ओढ़ लेती है ये नगरी.
संध्या के समय कुंभ नगरी का हर कोना भक्ति और उल्लास से भर जाता है. रंग-बिरंगी रोशनी के बीच भजन-कीर्तन की मधुर धुनें पूरे माहौल को भक्तिमय बना देती हैं. कहीं भंडारे में श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते नजर आते हैं तो कहीं कथाओं और रासलीलाओं में डूबे हुए दिखाई देते हैं. हर पंडाल में भक्ति की अलग-अलग धाराएं बहती हैं- कहीं राम कथा तो कहीं शिव पुराण.
भक्ति और देशभक्ति का अनोखा संगम
कुंभ नगरी में केवल भक्ति की ही नहीं, देशभक्ति की धारा भी बहती है. स्थानीय गायक मिश्र बंधु के देशभक्ति गीतों पर श्रद्धालु और साधु-संत झूमते नजर आते हैं. जटाधारी युवक और बुजुर्ग सभी इस माहौल में रमे हुए हैं.
भंडारे और कथा का आनंद
सुरभि शोध संस्थान और मारवाड़ी सेवा संघ के भंडारे में श्रद्धालु सुबह से आधी रात तक पंगत में बैठकर सुस्वादु प्रसाद का आनंद लेते हैं. भंडारे के माध्यम से पूरे क्षेत्र में सेवा और संतोष का संदेश दिया जा रहा है. कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, इसके बाद प्रसाद का वितरण किया जा रहा है.
रासलीला के साथ होता है समापन
रासलीला का आयोजन इस भक्ति पर्व को और भी खास बना देता है. कथा सुनने के बाद श्रद्धालु रासलीला का आनंद लेते हैं और फिर खुले आसमान के नीचे अपनी जगह बना लेते हैं. कोई पंडाल में सोता है तो कोई खुले आसमान तले. महाकुंभ की रातें श्रद्धालुओं के लिए विशेष हैं. दिन की भागदौड़ और कठिनाइयों के बीच कुंभ नगरी की ये रातें जैसे एक अलौकिक दुनिया में ले जाती हैं, जहां हर चीज दिव्य, भव्य और अलौकिक महसूस होती है.