भोले बाबा कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते. लखनऊ में गोमती नदी के तट पर बने मनकामेश्वर मंदिर में तो महादेव अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं. डालीगंज में गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का ये मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. मंदिर के महंत केशवगिरी के ब्रह्मलीन होने के बाद देव्यागिरी को यहां का महंत बनाया गया. कहा जाता है कि माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रुककर भगवान शंकर की अराधना की थी, जिससे उनके मन को बहुत शांति मिली थी. उसके बाद कालांतर में मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना कर दी गई.
गोमती नदी के किनारे बसा यह मंदिर रामायणकाल का है और इनके नाम मनकामेश्वर से ही इस बात की एहसास हो जाता है कि यहां मन मांगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती. जैसे ही भक्त इस मंदिर में प्रवेश करते हैं उन्हें शांति की अनुभूति होती है. लोग यहां आकर मनचाहे विवाह और संतानप्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर बाबा का बेलपत्र, गंगाजल और दूध आदि से श्रृंगार करते हैं, हालांकि बाबा एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं.
सावन, महाशिवरात्रि और कजरी तीज के मौके पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. यहां पर आरती का भी विशेष महत्व है. कहते हैं कि यहां की आरती में शामिल होकर मन में जो भी कामना की जाती है वो अवश्य पूरी होती है. फूल, बेलपत्र और गंगा जल से भोले भंडारी का अभिषेक होता है.
मंदिर में सुबह और शाम को भव्य आरती होती हैं, जिसमें काफी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं. मनकामेश्वर मंदिर में काले रंग का शिवलिंग है और उस पर चांदी का छत्र विराजमान होने के साथ मंदिर के पूरे फर्श में चांदी के सिक्के लगे हैं, जिससे मंदिर मनोहारी लगता है.