समंदर की लहरें जैसे ही सपनों की नगरी मुंबई को जगाती हैं तो जिंदगी निकल पड़ती है अपनी यात्रा पर. यात्रा के उन्हीं रास्तों में एक राह जाती है उस परम शक्ति की ओर जो रक्षा करती है अपने दर पर आने जाने वाले हर भक्त की फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का हो.
जिसके दरबार में हर मनोकामना पूरी होती है. जिसके दरबार में शीश नवाने भर से सिद्धि और समृद्धि मिलती है. वो दरबार है प्रथम पूज्य सर्वसिद्धि दायक भगवान श्री गणेश का जो विराजमान हैं सिद्धिविनायक गणपति मंदिर में.
मुंबई के प्रभादेवी क्षेत्र में कदम रखते ही दूर से ही सिद्धिविनायक मंदिर का कलश नजर आने लगता है और उसके साथ दिखाई देने लगता है वो पवित्र ध्वज जो किसी प्रहरी की तरह अपनी ओर आने वाले हर श्रद्धालु की अगवानी करता है. ये ध्वज मानो बखान कर रहा हो उस परम शक्ति का जिसकी आराधना के बिना किसी भी शुभ काम का आरंभ नहीं होता.
इस दिव्य मंदिर के बारे मान्यता है कि इस मंदिर में सिद्धिविनायक स्वयं प्रकट हुए थे. समय बीता और उसके साथ-साथ हर भक्त के मन में भगवान सिद्धिविनायक के लिए श्रद्धा बढ़ती चली गई जो आज भी कायम है, यही कारण है कि कभी यहां बड़े से बड़े नायक नंगे पैर अपने परिवार के साथ पैदल चल कर आते हैं और समृद्धि की कामना करते हैं तो यहीं जिंदगी के उतार चढ़ाव से मुक्ति की कामना लेकर करोंड़ों भक्त अपनी अर्जियां लगाते हैं.
दुखहर्ता भगवान गणपति का ये वो दरबार है जहां सिद्धि भी मिलती है और समृद्धि भी. जो यहां आता है वो अपना अस्तित्व भूल जाता है और भगवान सिद्धिविनायक गणपति की महिमा के सामने नतमस्तक हो जाता है. किसी मुसीबत से निजात पानी हो या फिर शुरू करना हो कोई भी शुभ काम. भक्त सबसे पहले विनायक के दरबार में आकर भगवान के सामने शीश झुकाते हैं और फिर उनसे वरदान मांगते हैं.
सुबह होने के साथ ही सिद्धिविनायक के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है. विनायक के दर्शनों के लिए जाने वाले भक्त मोदक, नारियल और पुष्प ले जाना नहीं भूलते, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मोदक और नारियल के भोग से सिद्धिविनायक जल्द प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.
ढोल नगाड़ों के बीच सिद्धिविनायक गणपति की आराधना शुरू होती है. भगवान गणेश का जैसा मनोरम और अद्भुत रूप यहां देखने के मिलता है वैसा और कहीं नहीं देखने को मिलता. भव्य सिंहासन पर स्थापित ढाई फुट ऊंची और दो फुट चौड़ी प्रतिमा एक ही पत्थर की बनी है. चार भुजाधारी रूप में बाप्पा के एक हाथ में कमल, दूसरे में फरसा, तीसरे में जपमाला और चौथे में मोदक है. बाएं कंधे से होते हुए उदर पर लिपटा सांप है और माथे पर एक आंख टीक उसी तरह सुशोभित है, जैसे शिव की तीसरी आंख.
सिद्धिविनायक रूप में भगवान की सबसे बड़ी विशेषता है इस मूर्ति में बाप्पा की सूंड. आमतौर पर गणपति की सूंड बायीं तरफ मुड़ी़ होती है लेकिन भगवान सिद्धिविनायक की सूंड दायीं तरफ मुड़ी़ होने से उन्हें नवसाचा गणपति यानी मन्नत पूरी करने वाले गणपति कहा जाता है. गणपति के दोनों ओर रिद्धि और सिद्धि की प्रतिमाएं भी मौजूद हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान गणेश बुद्धि और पराक्रम देते हैं जबकि रिद्धि-सिद्धि सुख और समृद्धि.
भगवान सिद्धिविनायक के पास ही स्थित है उनके प्रिय वाहन मूषकराज की प्रतिमा. ऐसी मान्यता है कि अपनी मनोकामना मूषकराज के कान में कह देने से वो जल्द पूरी होती है. भगवान सिद्धिविनायक के मंडप में ही एक ओर हनुमान जी भी विराजमान हैं. ऐसा माना जाता है कि कोई अगर हनुमान जी के दर्शन किए बिना चला जाए को भगवान सिद्धिविनायक की आराधना का पुण्य नहीं मिलता यही वजह है कि भगवान सिद्धिविनायक के साथ हनुमान जी की आराधना का महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार खुदाई के दौरान हनुमान जी स्वयं यहां प्रकट हुए थे.
वैसे तो यहां भक्तों का आना साल भर लगा ही रहता है लेकिन गणेशोत्सव के दौरान यहां भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है. फिर क्या आम और क्या खास, हर कोई बाप्पा के मनमोहक रूप के दर्शन करके उनका आशीर्वाद पाना चाहता है.