देवी भगवत, स्कन्द और कलिका आदि पुराणों तथा शिव पुराण में वर्णित शक्ति पीठों में से एक श्री मां पाटेश्वरी शक्तिपीठ अथवा देवीपाटन मंदिर अत्यंत प्राचीन और प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. यह उन 51 शक्तिपीठों में से एक है जो शिव और सती के प्रेम का प्रतीक है.
पाटन देवी में मां का बायां स्कन्ध गिरा था. कुछ लोग यह मानते हैं कि इस स्थान पर जगदम्बा सती का पाटन वस्त्र गिरा था जिसकी पुष्टि एक प्राचीन श्लोक से भी होती है.
पटेन सहित: स्कन्ध:, पपात यत्र भूतले।
तत्र पाटेश्वरी नाम्ना, ख्यातिमाप्ता महेश्वरी।।
मां पाटेश्वरी शक्तिपीठ की महत्ता
यहां मां की मूर्ति है उसके सामने के यज्ञ में पति शिव का स्थान एक सुरंग है जहां मां का स्कन्ध या पट गिरा था इसलिए इसका नाम पातालेश्वरी भी है. यहां एक सूर्य
कुण्ड भी है जहां मान्यता है कि श्री परशुराम व द्वापर युग में सूर्यपुत्र महारथी कर्ण ने सूर्यकुंड में स्नान कर दिव्य अस्त्रों की शिक्षा ली. वो रोजाना सूर्य की पूजा करते थे.
बताया जाता है कि मंदिर के निर्माण के वक्त से यहां धूना जल रहा है. इस मंदिर में जो कोई भी श्रद्धालु सच्चे मन से मुराद मांगता है तो मां उसकी हर मुराद पूरी करती हैं. यहां की पूजा बड़ी ही विचित्र व गुप्त होती है. यहां नवरात्रों में बड़ी दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और दर्शन करते हैं. यहां चैत्र नवरात्रि में पंचमी के दिन से नाथ संप्रदाय के पुजारी नेपाल से आकर मां की पूजा संभालते हैं और दशमी तक पूजा वही करते हैं.
यहां साल के दोनों नवरात्रों में बड़ा मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं और मां की पूजा अर्चना करके पुण्य कमाते हैं.
मां पाटन देवी मंदिर नेपाल और हिन्दुस्तान की सीमा पर स्थित उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के तुलसीपुर में स्थित है.
क्या है कथा
पुराणों में देवी भागवत व शिव चरित्र में इस स्थान का वर्णन है. ग्रंथों के अनुसार पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पति शिव का स्थान न देख कर उनके अपमान से नाराज
जगदम्बा सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहूति दे दी. इससे महादेव शिव ने क्रोधित होकर राजा दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और सती के शव को कंधे पर
रखकर उन्मत होकर घूमना शुरू कर दिया. इससे ब्रह्माण्ड में उथल पुथल मच गया और संसार चक्र में व्यवधान उत्पन्न हो गया. तब देवी देवता भगवान विष्णु के पास
गए. भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को काट कर पृथ्वी पर गिरा दिया. माता के शव के 51 टुकड़े भारत के विभिन्न स्थानों पर गिरे और जहां-जहां
ये गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए.
यहां माता का वाम स्कन्ध सहित पट गिरा था जिससे इसे देवी पाटन के नाम से जाना गया. यह वह मां के मूर्ति के सामने पत्थर से ढका वह स्थान है जहां मां का स्कन्द गिरा था यहां सुरंग बन गया था जिसे अब ढक दिया गया है. यह मां की अष्ट भुजा की वह मूर्ति है जिसकी पूजा अर्चना व श्रृंगार गुप्त तरीके से किया जाता है.
सुरंग पर मशहूर है एक और किवदंती
जब भगवान राम ने सीता जी से लंका विजय के बाद पुनः अग्नि परीक्षा देने की बात कही तो सीता जी को अपमान महसूस हुआ उन्होंने लज्जा से गढ़ते हुए पृथ्वी मां से अपने गोद में समा लेने की प्रार्थना की. तब पृथ्वी फट गयी और धरती मां एक सिंहासन पर बैठ कर निकली और सीता मां को अपनी गोद में बिठा कर पाताल में ले गयी.
मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां सीता मां धरती में समायी थीं और यहां सुरंग बन गया था जो पाताल लोक जाता है. इसके मुहाने पर अब एक चबूतरा बना दिया गया है जिसपर कपड़ा बिछा रहता है श्रद्धालु यहां अक्षत-पुष्प व प्रसाद चढ़ा कर पुण्य के भागीदार बनते हैं.
यहां एक अखंड ज्योति है जो मंदिर के निर्माण के समय से ही प्रज्वलित है. जिस कुंड में कर्ण स्नान कर सूर्य की पूजा करते थे मान्यता है कि उसमें नहाने से कुष्ठ रोग समेत अन्य चर्म रोगों का निवारण होता है. अखंड धूना यहां आदि काल से जल रहा है.
मुख्य पुजारी करते हैं विचित्र पूजा
यहां मन्नत के अनुसार लोग मुंडन संस्कार भी धूम-धाम से करते हैं. यहां लोग कई दिनों की पूजा और मन्नत पूरा होने पर खाना बना कर मंदिर के बाहर प्रांगण में रहते हैं और अलसुबह कुण्ड में नहा कर मां की पूजा करते हैं. मंदिर सुबह से शाम 4 बजे तक खुला रहता है. फिर मंदिर के मुख्य पुजारी एक विचित्र सी पूजा के दौरान मुख्य मंदिर के चारो तरफ घूम कर मंदिर के अंदर जाकर कपाट बंद करते हैं और 3 घंटे बाद फिर शाम को 7 बजे कपाट खोल कर बहार आते हैं. तब तक वह अंदर गुप्त पूजा करते हैं फिर मंदिर दर्शन के लिए खुल जाता है.