वैसे तो हर तरह का वृक्ष इंसानों को किसी न किसी रूप में फायदा ही पहुंचाता है. पेड़-पौधों की पूजा करना हमारी परंपरा का अंग रहा है. फिर भी कुछ वृक्षों की पूजा का खास महत्व है. इनमें पीपल का स्थान सबसे ऊपर है.
पीपल की पूजा का महत्व अधिक होने के पीछे कई कारण हैं. अगर आध्यात्मिक रूप से देखें, तो इसे वृक्षों में सबसे अधिक पवित्र माना गया है. साथ ही पर्यावरण की हिफाजत में भी इसका कोई जोड़ नहीं है.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, 'अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्', मतलब 'समस्त वृक्षों में मैं पीपल हूं.' ऐसा कहकर उन्होंने इस वृक्ष की महिमा स्वयं ही कह दी है.
पुराणों के अनुसार, पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सभी देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं. इसे साक्षात् विष्णु स्वरूप बताया गया है.
ऐसा माना जाता है कि पीपल की पूजा करने से आयु लंबी होती है. मान्यता है कि जो पीपल को पानी देता है, वह सभी पापों से छूटकर स्वर्ग प्राप्त करता है. पीपल में पितरों का वास भी बताया गया है.
धर्मशास्त्रों के अनुसार, पीपल का एक पेड़ लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार को कोई दुख या धन का अभाव नहीं सताता है.
आयुर्वेद में भी पीपल का महत्व बताया गया है. पीपल के पत्ते, फल, छाल आदि से कई तरह की बीमारियों का नाश होता है. पीपल के फल से पेट से जुड़ी बीमारियां खत्म हो जाती है. पीपल की छाल के अंदर के भाग से दमा की दवा बनती है. इसके कोमल पत्ते चबाकर खाने और इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पीने से चर्म रोगों में आराम मिलता है.
वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है. यह हर तरह से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में पीपल की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है.