कैलाश मानसरोवर अब दूर नहीं, क्योंकि भोले के धाम तक पहुंचने के लिए भक्तों को नए और आसान रास्ते का तोहफा मिल गया है. इस नए रास्ते से 18 जून से यात्रा शुरू होगी.
भारत सालों से इसकी मांग करता आ रहा था और आखिरकार शिव भक्तों का यह सपना पूरा हो गया. भोले भंडारी के भक्तों के लिए नया द्वार खुला है. आस्था की जिन पगडंडियों के लिए पिछले 60 बरस से मांग हो रही थी, चीन से लगातार बातचीत हो रही थी, शिव के भक्तों की आराधना अब पूरी हो गई है.
चीन के साथ भारत का यह समझौता बड़ा हैं, क्योंकि भगवान के घर तक पहुंचने का रास्ता आसान हुआ है. यूं तो यह करार पिछले साल सितंबर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा पर ही हो गया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी तीन दिवसीय चीन यात्रा के दूसरे दिन 18 जून से मानसरोवर यात्रा के शुरू होने का औपचारिक ऐलान कर दिया.
22 हजार 28 फीट की ऊंचाई, हर साल हजारों शिवभक्तों का रेला, शिव के धाम की इस यात्रा के लिए भोले भंडारी के पुजारी दुर्गम पहाड़ियों और दुर्गम रास्तों से होकर यात्रा करते आए हैं. नए रास्ते पर चीन के समझौते के बाद शिवभक्तों की मुश्किलें आसान रास्ते के साथ आसान हो जाएंगी.
इस मार्ग के खुलने से सबसे ज्यादा फायदा बुजुर्गों को होगा. अब वो पैदल यात्रा की तकलीफ से बच सकेंगे. नए रास्ते से कैलाश मानसरोवर यात्रा 1 महीने के बजाय 1 हफ्ते में पूरी होगी.
कैलाश मानसरोवर को शिव-शंभु का धाम माना जाता है. शिवधाम के दर्शन के लिए हर साल हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक कई दिनों की दुर्गम यात्रा को तय कर कैलाश पहुंचते हैं. देश के लाखों लोगों को उत्तराखंड के पुराने रास्ते के अलावा एक नए रास्ते का तोहफा मिला है. लाखों लोग अब पुराने रास्ते के 150 किलोमीटर के हिस्से की तकलीफ और परेशानी से बच सकेंगे. ये वो हिस्सा है, जहां श्रद्धालुओं को पैदल ही थका देने वाली चढ़ान को पार करना पड़ता है. नए रास्ते की बदौलत अब यात्री अपनी गाड़ी से ही कैलाश मानसरोवर तक पहुंच सकेंगे.
मोदी की चीन यात्रा के दौरान मानसरोवर जाने वाले भक्तों को मिल रहे नए तोहफे पर आखिरी मुहर भी लग गई. इस साल जून से शुरू होने वाली यात्रा में भक्त नए रास्ते का इस्तेमाल कर पाएंगे. भारतीय सीमा के सिक्किम के नाथुला दर्रे का इस्तेमाल इस यात्रा के लिए होगा.
धारचूला से लिपुलेख दर्रे के परंपरागत रूट का इस्तेमाल लोग सालों से करते आए हैं. लेकिन 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद चीन ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर रोक लगा दी थी. लेकिन 1981 में कुछ शर्तों के साथ यह रूट फिर से खोला गया. तब से अब तक इसी परंपरागत रूट से ही यात्रा जारी है. लेकिन भारत सरकार चीन से एक और रास्ता खोलने की मांग करती रही थी.
उत्तराखंड से होकर चीन जाने वाले रास्ते में जान-माल का खतरा हमेशा बना रहता है. यात्रियों को करीब-करीब 150 किलोमीटर तक पैदल कच्चे रास्ते पर चलना पड़ता था. अब नए रूट के मिल जाने से लोगों में राहत है.
कैलाश मानसरोवर तक पहुंचने की राह जितनी मुश्किल है, भक्तों की आस्था और विश्वास उतना ही अटूट. साक्षात शिव के दर्शन की लालसा उन्हें दूर-दूर कैलाश मानसरोवर खींच लाती है. यहां दर्शन कर भक्त समस्त पाप कर्मों से मुक्ति पाते हैं.