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खत्म हुआ रमजान का मुकद्दस महीना, देश भर में धूमधाम से मनाई जा रही है ईद, PM ने दी बधाई

देश भर में आज ईद-उल-फितर का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. दिल्ली की जामा मस्जिद में हजारों लोगों ने एक साथ सुबह 7:30 बजे पवित्र नमाज पढ़ी और एक दूसरे के गले मिलकर ईद की बधाई दी.

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Eid Mubarak
Eid Mubarak

देश भर में आज ईद-उल-फितर का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. दिल्ली की जामा मस्जिद में हजारों लोगों ने एक साथ सुबह 7:30 बजे पवित्र नमाज पढ़ी और एक दूसरे के गले मिलकर ईद की बधाई दी.

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सोमवार को चांद दिखाई देने के बाद देश भर में रमजान के पाक महीने की समाप्ति का ऐलान हो गया था. फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुक्कर्रम की अध्यक्षता वाली कदीम शाही हिलाल समिति की एक बैठक के बाद मंगलवार को ईद का ऐलान किया गया.

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी देशवासियों को ईद की मुबारकबाद दी है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने शुभकामना संदेश में कहा कि ईश्वर देश के लोगों पर अपनी असीम कृपा बनाए रखेंगे. उन्होंने कहा, ईद उल फितर रमजान के पवित्र माह की समाप्ति के मौके पर मनाया जाता है जिसमें इबादत के साथ आत्म संयम और नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा की भावना शामिल होती है.' गृह मंत्री ने कहा कि यह त्योहार एकता, सद्भाव और सहिष्णुता की हमारी भावना को मजबूत बनाता है और सभी के प्रति अच्छी भावना पैदा करता है.

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इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने रमजान के दौरान मुस्लिम सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच बिना खाए पिए रोजा रखते हैं. इस मुकद्दस महीने को आत्मसंयम और त्याग के साथ ही हर वर्ग के बीच भाई चारे के रुप में देखा जाता है. चांद दिखने के अगले रोज ईद उल फितर के जश्न के साथ यह खत्म होता है.

रमजान की जुदाई पर क्या लिखते हैं शायर मुनव्वर राना
ईद का चांद देहातों में दरख़्तों की आड़ से और शहरों में इमारतों के दरीचों से झांकने लगा है. नन्हे-नन्हे बच्चे अपने बुज़ुर्गों की लाठी बने हुए छतों पर आ गए हैं. बूढ़ी दादी अपनी झुर्रियों से भरे हुए चेहरे पर धुंधलाती हुई आंखों से चांद को तलाश करते हुए बड़बड़ा रही है.

जीती रहो मगर मुझे आता नहीं नज़र
बेटी कहां है चांद बताना मुझे किधर
अफसोस अब निगाह भी कमज़ोर हो गई
जो चीज़ कीमती थी बुढ़ापे में खो गई

बच्चे अपनी छोटी-छोटी उंगलियों से चांद की तरफ इशारा करते हैं और चंदा मामा कभी शरमाकर कभी ग़रीबों और नादानों से निगाहें छुपाते हुए बादलों में छुप जाते हैं. ईद का चांद देखने वाले फूट-फूट कर रो क्यों रहे हैं? उनकी फूल जैसी आंखों से आंसुओं की शबनम क्यों बहने लगी है?

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रमज़ान की जुदाई का ग़म सिर्फ रोज़ादार ही जानता है. फिर सांसों का क्या ऐतबार. ज़िंदग़ी की नाव का कोई मुस्तक़िल साहिल नहीं होता. ज़िंदग़ी तो कठपुतली का एक खेल है, जिसकी डोर रहती दुनिया तक परवरदिगार के हाथों में ही रहेगी. साइंस कितनी भी तरक्की करे, आदमी चांद-सूरज से कितनी ही दोस्ती करे, अस्पताल कितनी ही मशीनों से आरास्ता हो जाएं, ज़िंदग़ी पर किसी का बस नहीं.

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