रमजान माह को तीन भागों में बांटकर इसकी खास फजीलत बयां की गई हैं. इस्लाम में रमजान के शुरुआती 10 दिन या अशरे को रहमत का अशरा बताया गया है. अब तो बरकत का दूसरा अशरा भी खत्म हो गया है.
जहन्नुम से आजादी का अशरा
इस्लामी धर्मग्रंथों में आखिरी अशरे की बहुत फजीलत बताई गई है, इसलिए इसे जहन्नुम से आजादी का अशरा कहा गया है. रमजान के दौरान एक रात ऐसी बताई गई है, जिसमें की गई इबादत हजार माह की इबादत से बढ़कर होती है. इसे 'लैलतुलकद्र' कहा जाता है. इसे पाने के लिए इस्लाम धर्म के सच्चे अनुयायी 10 रातों में नियमित रूप से जागकर इसे पाने का पूरा प्रयत्न करते हैं, इसलिए आखिरी अशरे में 'ऐतकाफ' करने या घरबार छोड़कर पूरी रात इबादत में गुजार देने का हुक्म है.
बहुत होता है एक दिन के ऐतकाफ का सवाब
इस्लामी विद्वानों के मुताबिक, इस एक दिन के एतेकाफ का अज्र या सवाब बहुत ही ज्यादा है. इसके एवज में अल्लाह तआला बंदे से जहन्नम को तीन खंदक दूर कर देता है यानी प्रत्येक रात की इबादत का सवाब इतना ज्यादा बताया गया है कि जन्नत या स्वर्ग मिलने की संभावना तय मानी जाती है.
हजार महीने की रात से अफजल एक रात
मौलाना फजले इलाही के मुताबिक, एक हदीस में लैलतुलकद्र के विषय में बताया गया है कि यह रात हजार महीने की रात से भी अफजल है. 20 रमजान के बीत जाने के बाद रात-दिन मस्जिद में रहकर दुनियावी जीवन से इतर इबादत करने का नाम एतेकाफ है, जिसमें इबादात के अतिरिक्त सोने, जागने, तिलावते कुरान करने, जिक्र व अजकार करने आदि सब कामों पर अल्लाह तआला ने बहुत ज्यादा सवाब या पुण्य का वादा किया है.
- इनपुट IANS