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Ramzan: जानिए, क्या है जकात और फितरा? इस्लाम में क्या है इसका महत्व

रमजान में रोजा-नमाज और कुरआन पढ़ने के साथ जकात और फितरादेने का भी बहुत महत्व है. जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है. रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है. आइए जानते हैं फितरा और जकात क्या होता है.

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रमजान 2019
रमजान 2019

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रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है. इस साल रमजान का पवित्र महीना 7 मई 2019 से शुरू हुआ है. रमजान को 'कुरआन का महीना' भी कहा जाता है, क्योंकि इसी महीने में पैगंबर मोहम्मद के जरिए कुरआन उतारा गया था. रमजान में रोजा-नमाज और कुरआन की तिलावत (कुरआन पढ़ने) के साथ जकात और फितरा (दान या चैरिटी) देने का भी बहुत महत्व है. जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है.

इस्लाम के मुताबिक, जिस मुसलमान के पास भी इतना पैसा या संपत्ति हो कि वो उसके अपने खर्च पूरे हो रहे हों और वो किसी की मदद करने की स्थिति में हो तो वह दान करने का पात्र बन जाता है.  रमजान में इस दान को दो रूप में दिया जाता है, फितरा और जकात. आइए जानते हैं फितरा और जकात क्या होता है.

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क्या है जकात (दान)

इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैं. यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है.

यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है, लेकिन वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर रिटर्न फाइल करने की तरह ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात निकालते हैं. मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं और उसमें से 2.5 फीसदी दान करते हैं. असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है. यह जकात खासकर गरीबों, विधवा महिलाओं, अनाथ बच्चों या किसी बीमार व कमजोर व्यक्ति को दी जाती है.

महिलाओं या पुरुषों के पास अगर ज्वैलरी के रूप में भी कोई संपत्ति होती है तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है. लेकिन जो लोग हैसियतमंद होते हुए भी अल्लाह की रजा में जकात नहीं देते हैं, वो गुनाहगारों में शुमार है.

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किसे देनी होती है जकात

अगर परिवार में पांच सदस्य हैं और वो सभी नौकरी या किसी भी जरिए पैसा कमाते हैं तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फर्ज माना जाता है. मसलन, अगर कोई बेटा या बेटी भी नौकरी या कारोबार के जरिए पैसा कमाते हैं तो सिर्फ उनके मां-बाप अपनी कमाई पर जकात देकर नहीं बच सकते हैं, बल्कि कमाने वाले बेटे या बेटी पर भी जकात देना फर्ज होता है.

जकात के बारे में पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है, 'जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होती है, बल्कि धरती और जन्नत (Heaven) के बीच में ही रूक जाती है.'

क्या है फितरा

फितरा वो रकम होती है जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं. ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है. इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की साधन संपन्न के साथ ईद भी मन जाती है. फितरे की रकम भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों और सभी जरूरतमंदों को दी जाती है. इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है.

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जकात और फितरे में बड़ा फर्क ये है कि जकात देना रोजे रखने और नमाज पढ़ने जैसा ही जरूरी होता है, बल्कि फितरा देना इस्लाम के तहत जरूरी नहीं है. फितरे के बारे में इस्लामिक स्कॉलर मौलाना अब्दुल हमीन नोमानी ने बताया कि जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं होती. इंसान अपनी हैसियत के हिसाब से कितना भी फितरा दे सकता है.

वहीं, जकात व फितरा पर रोशनी डालते हुए विश्व विख्यात इस्लामिक संस्थान दारूल उलूम देवबंद के जनसंपर्क अधिकारी अशरफ उस्मानी साहब ने बताया, 'अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है. गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए इसलिए अल्लाह ताला ने हर संपन्न मुसलमान पर जकात और फितरा देना फर्ज कर दिया है.'

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