हिन्दू धर्म के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है. शनि जयंती का यह पर्व इस बार शनिवार को पड़ा है. एक तरफ जहां शनि जयंती शनिवार को पड़ी है, वहीं इस दिन 8 तारीख है. 8 अंक शनि का अंक माना जाता है, जिसमें शनि की समस्त शक्तियां समाहित होती हैं. वहीं इस दिन सर्वार्थ सिद्धि व अमृत योग के साथ ही रोहिणी नक्षत्र का अद्भुत संयोग भी कई वर्ष बाद बन रहा है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन शनि से प्रभावित जातकों को पूजा का विशेष लाभ मिलेगा.
ज्योतिषियों का कहना है कि इस जयंती पर अगर शनि से जुड़े दान कर कुछ मंत्रों का जाप कर लिया जाए तो बढ़ते कर्ज से मुक्ति पाने में मदद मिलेगी. शत्रुओं पर विजय मिलेगी और जी का जंजाल बन चुकी बीमारियां ठीक होने लगेंगी. जिन जातकों को साढ़ेसाती, ढैय्या के प्रभाव के साथ ही शनि की महादशा व अंतर्दशा या जन्म कुण्डली में शनि के विषम प्रभाव के होने से परेशानी हैं, शनि जयंती पर शनि देव का तेल से अभिषेक करने भर से उन्हें राहत मिल जाएगी .
न्याय के देवता शनि, कलयुग के देवता शनि, अपनी टेढ़ी चाल से सबको डराने वाले शनि और सरसों के तेल से प्रसन्न होने वाले शनि महाराज को वैदिक ज्योतिष में बेहद अहम माना जाता है. सनातन धर्म में शनि की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनि को सिर्फ ग्रह नहीं, बल्कि न्याय का देवता माना जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ज्येष्ठ महीने में शनिवार की अमावस्या के दिन सूर्य की पत्नी छाया ने पुत्र को जन्म दिया, जिनका नाम शनि रखा गया. सूर्य जब अपने पुत्र को देखने पहुंचे तो उनके तेज से झुलसकर शनि का रंग काला पड़ गया. सूर्य को अपनी इस गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी और इसका परिणाम सूर्य को तुरंत भुगतना पड़ा. अपने पुत्र शनि को नजर भर देखते ही सूर्य का सारा तेज धुंधला पड़ गया और सूर्य को ग्रहण लग गया. कहते हैं तब से शनि का रंग हमेशा के लिए काला हो गया.
सिर्फ शनि के काले रंग की ही नहीं उनकी टेढ़ी चाल की कहानी भी बहुत अनोखी है. कहते हैं कि यह कहानी शनि महाराज के गुस्सैल स्वभाव से जुड़ी हुई है, कहा जाता है कि शनि जब बालक थे, तो एक दिन उन्होंने अपनी मां छाया से भोजन मांगा. भोजन मिलने में देरी हुई तो गुस्से में उन्होंने छाया को लात मार दिया. शनि की इस हरकत से गुस्साई छाया ने उन्हें लंगड़ा होने का शाप दे दिया, तभी से शनि की चाल टेढ़ी हो गई और उनका खौफ और बढ़ गया, लेकिन शनिदेव ने अपनी गलतियों से सबक सीखते हुए यह प्रण लिया कि कलयुग में कोई भी झूठ बोलेगा या किसी के साथ अन्याय होगा तो वो शनि के कोप का शिकार होगा. यही वजह है कि उनकी टेढ़ी चाल भक्तों को अधर्म और अन्याय करने से रोकती है.