कहते हैं उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का निवास है. यही वजह है कि इसे देवभूमि उत्तराखंड, यानी "देवताओं की भूमि" कहा जाता है. हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में उत्तराखंड के पवित्र स्थानों का जिक्र है, वर्णन है. यहां से जुड़ी कई मान्यताएं हैं, कई लोक कथाएं हैं, देवी-देवताओं से जुड़े कई आयोजन हैं जो लोगों की आस्था के केंद्र हैं. ऐसा ही एक आयोजन उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक में हुआ. जहां शेडकुडिया महासू देवता ने 100 साल से ज्यादा समय बाद पढ़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के खाशधार प्रस्थान किया. इस पैदल यात्रा के पूरा होने पर सालों बाद आस्था का संगम देखने को मिलेगा.
शेडकुडिया महासू न्याय के देवता माने जाने वाले महासू महाराज का अगुवा वजीर हैं. उत्तरकाशी शहर से करीब 165 किलोमीटर दूर सीमांत मोरी ब्लॉक के (14 शो पर्वत ) में शेडकुडिया महासू की पूजा होती है. मोरी प्रखंड के 14 गांव ऐसे हैं जहां शेडकुडिया महासू को अपना आराध्य देव मानकर पूजा की जाती है. यहां के लोकगीतों और लोकनृत्यों, जागरा में महासू गाथा का वर्णन होता है. यहां के लोग शेडकुडिया महासू को इतना मानते हैं कि इस क्षेत्र में सभी मंदिर महासू महाराज के हैं साथ ही आस-पास के गांव में सारथी बोटासन महाराज, बिटासन देवी के मंदिर है. शेडकुडिया महासू ने 100 सालों के लंबे समय के बाद फतेह पर्वत से हिमाचल के खशधार प्रस्थान किया है.
100 साल पहले ऐसे टूट गया था यात्रा का सिलसिला
देवता की यात्रा के बारे में बात करते हुए शेडकुडिया महासू महराज के सयाणा रणदेव सिंह कुंवर ने बताया कि आज से करीब 100 साल पहले शेडकुड़िया महाराज हडवाडी गांव से प्रत्येक वर्ष छह माह तक हिमाचल प्रदेश के खशधार प्रवास पर रहते थे. इस दौरान देवता चांगशील होते हुए आवागमन करते थे. दूरी ज्यादा होने के कारण रात्रि विश्राम महाराज अपने श्रद्धालुओं और प्रजा के साथ चाईशील में ही करते थे. लेकिन एक बार चाईशील घाटी में भारी हिमपात हो गया. इससे कई सालों तक आवागमन बाधित रहा और यह सिलसिला टूट गया. लेकिन इस साल शेडकुड़िया देवता एक बार फिर एक साल के प्रवास पर निकले. हडवाड़ी गांव के स्थानीय प्रवीण चौहान और हरवंश चौहान ने बताया कि शेडकुड़िया महाराज की इस यात्रा में 4 से 5 दिनों का समय लगेगा. हिमाचल के खाशधार की यात्रा करीब 120 किलोमीटर की है जिसमें महाराज का (खांडा) उठाने वाले नंगे पैर चलेंगे.
क्या है महासू से जुड़ी पौराणिक मान्यता?
दरअसल न्याय के देवता के रूप में माने जाने वाले महासू देवता देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर से संबंध रखते हैं. हिमाचल के शिमला जिले के ऊपरी भागों और सिरमौर जिले के कुछ भागों में भी महासू देवता को इष्ट देव के रूप में मान्यता प्राप्त है. महासू असल में एक देवता नहीं, बल्कि चार देवताओं का सामूहिक नाम है. दरअसल पौराणिक कथाओं के अनुसार किर्मीर दानव राक्षक के आतंक से क्षेत्रवासियों को छुटकारा दिलाने के लिए हुना भाट नामक ब्राह्मण ने कशमीर जाकर महासूओं को किरमीर के बारे में बताया और उसे नष्ट करने हेतु उत्तराखंड कि भूमि में उपान लेने का प्रस्ताव रखा. मैनद्रथ कि पवित्र भूमि में चार भाई महासू संग सम्पूर्ण 9 लाखी महासू परिवार ने जन्म लिया और समय पश्चात किर्मीर को मारकर अपना महासुवि साम्राज्य स्थापित कर पर्वत-बंगाण- जौनसार-बावर-छुवारा-सिरमौर-रामपुर-आदि छेत्रों के कुलईस्ट और आराध्य देव बने. महासू महाराज का मुख्य मंदिर हनोल गांव में स्थित है.
चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासी महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू हैं, जो कि भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं. वहीं स्थानीय भगत सिंह रावत और रीतेश रावत ने बताया कि शेडकुड़िया महासू के 14 गांवों में हर साल सितंबर के महीने में जागडा मेला होता है, जिसमें तीन दिन लगातार दिन रात को महाराज का मेला लगाया जाता हैं . जागढा मेलों मै लोक संस्कृति, लोकनृत्य पहाड़ी गीतों का गायन किया जाता है और महासू महाराज के प्रांगण में मशाल, पहाड़ी भाषा मैं (चिड़ा) लगाया जाता हैं. मेले में लोकल संस्कृति, गीत-गायन रात्रि जागरण होता है. महाराज के मेले मैं लोगों द्वारा पहाड़ी लोकगीत, लामन, पहाड़ी छोड़ा, हारूल आदि गीत गाए जाते हैं.