अयोध्या में राम-जन्मभूमि कहे जाने वाली जमीन का विवाद कब विराम लेगा और मंदिर का निर्माण कब शुरू होगा, यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है, मगर मंदिर में लगाए जाने के लिए पत्थरों की नक्काशी और उन्हें तराशने का काम वर्ष 1990 से ही जारी है. विश्व हिंदू परिषद (विहिप) इन पत्थरों पर अभी तक लगभग 10 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है, 65 फीसदी काम पूरा हो चुका है.
राम मंदिर के लिए पत्थरों को तराशने का काम यहां 30 अक्टूबर, 1990 को शुरू हुआ था. शुरुआत में सिर्फ चार कारीगरों को इस काम में लगाया गया था, बाद में कारीगरों की संख्या बढ़ाई गई.
अयोध्या में विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा, 'वर्ष 1990 से ही कार्यशाला में पत्थरों को तराशने का काम चल रहा है. इस काम में कभी बाधा नहीं आई. राम मंदिर निर्माण के लिए 65 फीसदी पत्थरों को तराशने का काम पूरा हो चुका है.'
बकौल शर्मा, 'वर्ष 1992 तक पत्थरों को तराशने का काम तेज कर दिया गया. पहले इसमें केवल चार कारीगर काम कर रहे थे, लेकिन बाद में इनकी संख्या 40 कर दी गई.'
शर्मा के अनुसार, 'अयोध्या में दो जगहों के अलावा राजस्थान में भी चार जगहों पर पत्थर तराशने की कार्यशाला चल रही है. अयोध्या में राम मंदिर बनाने के निमित्त दो लाख 75 हजार गांवों में शिलापूजन का कार्यक्रम चलाया गया था, और हर घर से सवा रुपये चंदा लिया गया था.'
विहिप सूत्रों के अनुसार, 'राम मंदिर आंदोलन के समय गांवों में जो शिलापूजन का कार्यक्रम चलाया गया था, उससे 2.50 करोड़ रुपये जमा हुए थे. इसी धन से पत्थरों को तराशने का काम शुरू हुआ था.'
विहिप के सूत्र बताते हैं कि अब तक पत्थरों को तराशने में करीब 10 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन इन पत्थरों का उपयोग कब होगा, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.
राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्यगोपाल दास सिर्फ इतना कहते हैं कि पत्थरों को तराशने का काम अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा.
तराशकर लंबे समय से रखे गए पत्थर अब काले पड़ते जा रहे हैं. शर्मा ने कहा कि पत्थर काले जरूर पड़ गए हैं, लेकिन जब लगाने का समय आएगा तो इन्हें मशीनों से साफ कर दिया जाएगा. इन पत्थरों की आयु 10 हजार वर्ष है.