सावन के महीने में श्रद्धालु भोलेनाथ को गंगाजल अर्पित करने के लिए व्याकुल हो उठते हैं. इस दौरान जिन स्थानों पर श्रद्धालुओं की सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है, उनमें झारखंड का बाबा बैद्यनाथधाम सबसे ऊपर है.
बाबा बैद्यनाथधाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यहां के शिवलिंग की महत्ता मनोकामना लिंग के रूप में भी होती है. यही वजह है कि सिर्फ सावन में ही नहीं, बल्कि सालोंभर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भोलेशंकर से प्रार्थना करते हैं.
बैद्यनाथ मंदिर परिसर में कुल 22 मंदिर हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, इन मंदिरों का निर्माण विश्वकर्मा ने किया है. बैद्यनाथ रावणेश्वर नाम से भी पूजे जाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, बैद्यनाथधाम में शिवलिंग की स्थापना लंकापति रावण द्वारा की गई है. कथा इस तरह है...
एक बार रावण ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न कर लिया. शंकर ने रावण से वर मांगने को कहा. रावण ने इच्छा जताई कि वह शिवलिंग को अपनी नगरी में स्थापति करना चाहता है. शंकरजी ने रावण की बात मान ली, लेकिन उन्होंने इसके साथ एक शर्त जोड़ दी. शिवजी ने रावण से कहा, 'शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी नहीं रखना, नहीं तो मैं उसी जगह पर स्थापति हो जाऊंगा.'
बलाभिमानी रावण शिवलिंग को लेकर कैलाशपुरी से लंका की ओर चला. रावण को देखकर देवलोक के सारे देवता चिंतित हो गए. उन्होंने सोचा कि अगर रावण का कार्य सिद्ध हो गया, तो वह अमरत्व पा लेगा. सभी देवों ने मिलकर विचार-विमर्श करके इसकी काट खोजी.
इधर रावण को अचनाक जोर से लघुशंका (पेशाब) लगी. जब वह लघुशंका का वेग बर्दाश्त नहीं कर सका, तो उसने शिवलिंग को एक ब्राह्मण को थमा दिया और हिदायत दी कि उसे कहीं भी न रखे. दैवयोग से रावण की लघुशंका इतनी देर तक होती रही कि ब्राह्मण शिवलिंग को थामकर थक गया और उसे जमीन पर रखकर चला गया.
बाद में रावण ने शिवलिंग को वहां से उठाने की बहुत कोशिश की, पर शिवलिंग को उठा न सका. अंतत: रावण ने उसी जगह पर शिवलिंग की पूजा-अर्चना की. वही स्थान बाद में रावणेश्वर महादेव के नाम विख्यात हुआ.