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जहां एक छत के नीचे विराजते हैं गणपति के तीन रूप

आप गणपति का दर्शन करनें मंदिरों में तो गए ही होंगे लोकिन अगर ऐसा कोई मंदिर मिल जाए जहां एक साथ गणपति के तीन रूपों के दर्शन हो जाए तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है. जी हां गणपति के ये तीन रूप एक साथ विराजते हैं एक छत के नीचे और एक बार भी अगर भक्तों को इनके दर्शन का सौभाग्य मिल गया तो भक्तों की समस्त इच्छाएं पूरी होने की गारंटी है.

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एक छत के नीचे विराजते हैं मंगलमूर्ती के तीन रूप
एक छत के नीचे विराजते हैं मंगलमूर्ती के तीन रूप

आप गणपति का दर्शन करनें मंदिरों में तो गए ही होंगे लोकिन अगर ऐसा कोई मंदिर मिल जाए जहां एक साथ गणपति के तीन रूपों के दर्शन हो जाए तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है. जी हां गणपति के ये तीन रूप एक साथ विराजते हैं एक छत के नीचे और एक बार भी अगर भक्तों को इनके दर्शन का सौभाग्य मिल गया तो भक्तों की समस्त इच्छाएं पूरी होने की गारंटी है.

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शिप्रा नदी के तट पर बसा शहर उज्जैन. राजा विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी और कालिदास की नगरी कही जाने वाली धार्मिक स्थली उज्जैन जहां का कण कण पुकारता है महाकाल का नाम. जहां आसमान में लहराती धर्म पताका किसी शक्ति के होने का हर पल एहसास करवाती रहती है. यह एहसास तब और गहरा हो जाता है जब एक ही छत के नीचे सिद्धि और भक्ति के दर्शन तीन अलग अलग स्वरूपों में होते हैं. भगवान के इन तीनों रूपों के दर्शन कर परिणय सूत्र में बंधे जोड़े अपने नए सफर की शुरूआत यहां आशीर्वाद लेकर ही करते हैं.

उज्जैन से करीब 5 किमी दूर बसा है भगवान चिंतामन गणेश का धाम जहां एक छत के नीचे भक्तों को एक नहीं बल्कि तीन-तीन गणपति के एक साथ दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है. एक तरफ जहां दिखते हैं चिंतामणी गणेश जो भक्तों के समस्त दुख, समस्त चिंताओं को हरने वाले माने जाते हैं तो वहीं सिद्धी गणेश और इच्छामन गणेश भी मंद मंद मुस्कान के साथ करते हैं अपने भक्तों का स्वागत. विशेष बात ये है कि चिंतामणी भगवान के इस रूप उनका मुख ही दिखता है.

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विनायक की तीनों मूर्तियां स्वयंभू हैं. भक्त पहले चिंतामणी के दर्शन करते हैं और फिर इच्छामन गणेश के दर्शन कर मांगते हैं इच्छा पूरी होने का वरदान. इसके बाद बारी आती है सिद्धिविनायक की जो रिद्धि-सिद्धि के दाता हैं. कहते हैं कि चिंतामन के मंदिर में भगवान चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक जब एक बार शुभकार्य का भार अपने ऊपर ले लेते हैं, तो उसे निर्विघ्न पूरा करके ही छोड़ते हैं. फिर चाहे बेटी की शादी हो या फिर किसी नए कार्य का आरंभ करना हो, विनायक के दरबार में भक्तों को उनकी हर समस्या का समाधान मिलता है.

उज्जैन में बने इस मंदिर में अगर बाप्पा की मूरत अनूठी है तो वहीं पार्वती पुत्र के इस मंदिर में पूजा का विधि विधान भी कुछ कम अनोखा नहीं है. भक्तों का मानना है कि किसी भी मंगल कार्य के आरंभ होने से पहले अगर एक नारियल और मंगल कार्य का निमंत्रण बाप्पा के चरणों में रख दिया जाए तो उस कार्य के निर्विघ्न पूरा होने की गारंटी होती है. यही वजह है कि जहां एक तरफ पूजा के बाद मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर गणपति तक पहुंचायी जाती है अपनी मनोकामना और इच्छा पूरी होने पर भक्त यहां आकर बनाते हैं सीधा स्वास्तिक. तो वहीं दूसरी ओर कुछ भक्त मौली बांधकर भी बाप्पा से कहते हैं अपनी इच्छा.

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उज्जैन के मालवा क्षेत्र में गणपति का क्या स्थान है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इलाके में कोई भी शादी हो पहला निमंत्रण विनायक के इस दरबार में आता है. वर वधू के माता-पिता पहले आकर पुजारी को लग्न की तारीख लिखवाते हैं फिर नवविवाहित जोड़े गणपति का आशीर्वाद लेकर ही अपने वैवाहिक जीवन का आरंभ करते हैं.

वैसे तो मध्य प्रदेश में गणपति के अनगिनत मंदिर हैं लेकिन बप्पा का ये धाम सबसे ऊंचा स्थान रखता है एक छत के नीचे विनायक के तीन तीन रूपों का आशीर्वाद प्राप्त कर भक्त अपने भाग्य को सराहना नहीं भूलते.

उज्जैन के चिंतामणि गणेश को प्रसन्न करना और उनसे मनचाहा आशीर्वाद पाना बेहद आसान है. मोतीचूर के लड्डू से भगवान की आराधना कर मंदिर के पीछे की दीवार पर उल्टा स्वस्तिक बना दिया जाए तो मुराद पूरी होते देर नहीं लगती. कहते हैं यहां त्रेतायुग में भगवान राम और सीता मैय्या गणपति का आशीर्वाद मांगने के लिए आए थे.

भक्तों की हर मनोकामना पूरी करने वाले चिंतामणी के दरबार की हर बात निराली है. मंदिर में प्रतिष्ठित बप्पा का स्वरूप इतना आकर्षक है कि श्रद्धालु एक पल के लिए भी इसे अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते. मंदिर परिसर से उठने वाली मंत्रों और घंटियों की ध्वनि कानों में एक अलग मिठास घोल देती है. श्रद्धालु यहां आने के बाद तीनों गणेश की भक्ति में बंध कर अपनी तमाम चितांओं को बप्पा के चरणों में अर्पित कर निश्चिंत हो जाते हैं.

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सुबह-सवेरे मंदिर के पट खुलने के साथ ही मंदिर में चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक के स्वरूपों की आराधना का दौर शुरू हो जाता है जो रात तक जारी रहता है. पट खुलते ही मंदिर के पुजारी भगवान चिंतामन का जल से अभिषेक करते हैं, इसके बाद भगवान को दूध, घी और पंचामृत चढ़ाया जाता है. पंचामृत से चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक के अभिषेक के बाद मूर्ति पर घी और सिंदुर का लेप कर किया जाता उनका भव्य श्रृंगार. कई भक्त तो ऐसे भी हैं जो यहां मनोकामना पूरी होने पर चिंतामन का श्रृंगार करवाते हैं जिसमें चांदी के वर्क से लेकर आकर्षक लेस तक का इस्तेमाल किया जाता है और फिर शुरू होता है आरती का सिलसिला जिसकी मधुर गूंज सुनने के लिए भक्त बाप्पा के दरबार में घंटों खड़े रहते हैं.

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