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मथुरा के इस कस्बे में नहीं मनाया जाता करवाचौथ, वजह हैरान कर देगी...

भारत के कई हिस्सों में मनाए जा रहे करवाचौथ से अलग मथुरा में एक ऐसी भी जगह है जहां किसी श्राप के डर से नहीं मनाया जाता करवाचौथ, जानें क्या है पूरी कहानी...

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Karva Chauth
Karva Chauth

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देश के कई हिस्‍सों में महिलाएं पतियों की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ व्रत कर रही हैं. लेेकिन मथुरा जिले में एक ऐसा भी कस्बा है जहां महिलाओं को करवाचौथ व्रत करने की सख्त मनाही है. ऐसा माना जाता है कि वहां ऐसा करने से पति की मृत्यु हो जाएगी.

मथुरा का सुरीर कस्बा मांत तहसिल इलाके में पड़ता है. यहां रहने वाली महिलाएं करवाचौथ का व्रत नहीं करतीं. यहां एक ऐसी मिथकीय कहानी प्रचलित है कि एक नवविवाहिता के पति की इसी दिन हत्या हो गई थी. उस महिला ने इस कस्बे को श्राप दिया कि इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं के पति की मौत हो जाएगी. संयोगवश, यहां ऐसी कुछ मौतें हुईं और उन्हें इसी प्रसंग से जोड़ दिया गया.

यहां के स्थानीय निवासी सुरेश चंद्र शर्मा आजतक से बातचीत में कहते हैं कि आम मान्यताओं के अनुसार यहां के राम नगला गांव का रहने वाला एक ब्राम्हण युवा अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ मथुरा के सुरीर इलाके से बैलगाड़ी लेकर जा रहा था. तभी इस कस्बे के कुछ लोगों ने उसे बैल चुराने के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला. संयोगवश, वह करवाचौथ का दिन था. इसी गुस्से में नवविवाहिता ने कस्बे को श्राप दिया कि यहां करवाचौथ करने वाली किसी भी महिला का पति जीवित नहीं रह पाएगा. वह विधवा महिला अपने पति की चिता के साथ सती हो गई.

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वे कहते हैं कि इस घटना के बाद इस इलाके के कई महिलाओं ने करवाचौथ का व्रत किया. संयोगवश, उनके पतियों की मृत्यु हो गई. इस बात ने उन्हें सती के श्राप में विश्वास करने को मजबूर किया. इस दिन इस इलाके की शादीशुदा महिलाएं करवाचौथ का व्रत नहीं करतीं. इसके बजाय वे उनके इलाके में बनाए गए सती मंदिर पर जाकर पूजा-अर्चना करती हैं और अपने पति के लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं.

इन परपंराओं से ही तो है करवाचौथ के व्रत की खूबसूरती...

इस इलाके की स्थानीय निवासी सुनहरी देवी कहती हैं कि सती मंदिर के निर्माण और यहां होने वाले पूजन के बाद से नौजवानों की अप्राकृतिक मौतें रुक गई हैं. यहां रहने वाली दूसरी महिलाएं भी इस बात की पुष्टि करती हैं. वहीं इस इलाके में हाल ही में शादी कर आई महिलाएं इस मिथकीय कहानी में विश्वास तो नहीं करतीं लेकिन डर की वजह से वह कुछ भी ऐसा करने से डरती हैं.

यहां ऐसी मान्यता है कि दुल्हा बारात के निकलने और घोड़ी पर चढ़ने से पहले 'सती' के मंदिर में मत्था टेकता है. वह यहां से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही दुल्हन को अपने घर लाने की ओर आगे बढ़ता है.

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