झारखंड में बाबा की नगरी देवघर में सावन की शुरुआत से ही कांवड़ियों का तांता लगा हुआ है. श्रद्धालु देवघर से करीब 108 किलोमीटर दूर बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा के बाद बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं.
सावन महीने में शिव को गंगाजल अर्पित करने का विशेष महत्व है. यही वजह है कि महीने भर तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले में पूरा कांवड़िया पथ 'बोल बम' के महामंत्र से गुंजायमान होता रहता है.
अजगैबीनाथ की नगरी सुल्तानगंज में मां गंगा उत्तरवाहिनी हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के उद्धार के लिए जब उनके वंशज भगीरथ यहां से गंगा को लेकर आगे बढ़ रहे थे, तब इसी अजगैबीनगरी में गंगा की तेज धारा से तपस्या में लीन ऋषि जाह्न्वी की तपस्या भंग हो गई. इससे क्रोधित होकर ऋषि पूरी गंगा को ही पी गए. बाद में भागीरथ के अनुनय-विनय पर ऋषि ने जंघा को चीरकर गंगा को बाहर निकाला. यहां मां गंगा को जाह्न्वी के नाम से जाना जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, मां गंगा के इसी तट से भगवान राम ने पहली बार भोलेनाथ को कांवड़ भरकर गंगा जल अर्पित किया था. आज भी शिवभक्त इस कथा को काफी भक्तिभाव से बांचते है. सदियों से चली आ रही यह परम्परा आज भी जारी है. हरेक शिवभक्त के मन में यह कामना रहती है कि वह सावन के पावन महीने में बाबा बैद्यनाथ के कामना लिंग को जल अर्पित करे.
सुल्तानगंज से जल उठाने के बाद कांवड़िए 'बोल बम' का उद्घोष करते हुए 108 किलोमीटर दूर बाबा के मंदिर की ओर बढ़ते हैं. यह रास्ता काफी कठिन होता है. इस दौरान भक्तों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. नदी-नाले, खेत और ऊंची पहाड़ियों के साथ-साथ रास्ते में पथरीली सड़कें भक्तों को काफी कष्ट देती हैं. लेकिन इसके बावजूद भक्तों का जोश और उमंग देखते ही बनता है.
इस दौरान कुछ ऐसे भक्त भी होते हैं, जो इस 108 किलोमीटर की कठिन यात्रा को 24 घंटे में पूरा करके जलार्पण करने का संकल्प लेते हैं. इन्हें 'डाकबम' कहते हैं. बाबा बैद्यनाथ की पावन नगरी का पूरा दृश्य ही भव्य है. यहां आस्था का जन-सैलाब हिलोरें ले रहा है. यह सिर्फ एक दिन की बात नहीं है, बल्कि पूरे सावन महीने में यही स्थिति बनी रहती है. तमाम शिवभक्त बाबा की एक झलक पाने को आतुर हैं. इन्हें पता है, बाबा औघड़दानी हैं.