देवों के देव महादेव की पसंद और नापसंद भी बिल्कुल अलग है. तिलकेश्वर महादेव देखने में भले ही किसी भी दूसरे मंदिर में विराजने वाले शिव की तरह लगें, लेकिन इन्हें प्रसन्न करना आसान नहीं.
तिलकेश्वर महादेव के नाम में छिपी है वो कहानी जिसकी वजह से देश के शिव मंदिरों में इनकी अलग ही महत्ता है. यहां महादेव का पंचामृत से नहीं बल्कि तिल से अभिषेक किया जाता है. मुट्ठी भर तिल अगर शिव को चढ़ा दिए जाए तो महादेव भक्त पर अपना हाथ रख देते हैं और जीवन भर उसका कल्याण करते हैं. अगर कोई खास मनोकामना हो या फिर शिव का वरदान जल्दी पाना हो तो आपको तिल के साथ गुलाब का एक फूल चढ़ाना होगा. कहते हैं ऐसा करने से घर में धन बरसने लगता है. नौकरी हो या व्यापार, सब जगह लाभ होने लगता है. कर्ज से बाहर निकलने की राह मिल जाती है और बिगड़े काम बन जाते हैं.
जल और दूध का अभिषेक कराने वाले शिव को तिल क्यों चढ़ाया जाता है इसकी कहानी लाखों साल पुरानी है. कहते हैं एक बार भूमनु के पुत्र राजा तिलक को धन की कमी से जूझना पड़ा था. उनका कोष खाली हो गया था और प्रजा पाई-पाई के लिए मोहताज हो गई थी, तब तिलक ने नर्मदा नदी के किनारे इसी जगह पर कठोर तप किया. उन्होंने तिल से सालों तक शिव का अभिषेक किया और पाया अकूत धन का वरदान. शिव ने उनकी इच्छा ही पूरी नहीं की बल्कि प्रजा को भी आजीवन सुख समृद्धि से भरे पूरे रहने का आशीर्वाद दिया. तभी से शिव यहां तिलकेश्वर महादेव के नाम से जाने और पूजे जाने लगे.
वैसे तो तिलकेश्वर महादेव को किसी भी रंग के तिल अर्पित किये जा सकते हैं, लेकिन काले तिल औघड़दानी को विशेष प्रिय हैं. तिल से बनी मिठाई या पट्टी भी भोलेशंकर को खूब भाती है, तभी तो भक्त यहां आकर जरा से तिल चढ़ाते हैं और झोली में भर कर ले जाते हैं ढेर सारी खुशियां.