कहते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड आने वाले शख्स ने अगर यहां के फलों का स्वाद नहीं लिया, तो उसकी यात्रा अधूरी है. ऐसे ही फलों में एक बेहद लोकप्रिय नाम है- काफल. एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है. काफल एक जंगली फल है. इसे कहीं उगाया नहीं जाता, बल्कि अपने आप उगता है और हमें मीठे फल का तोहफा देता है. गर्मी के मौसम में किसी बस स्टैंड से लेकर प्रमुख बाजारों तक में ग्रामीण काफल बेचते हुए दिखाई देते हैं.
काफल को समझते हैं देवताओं के योग्य
कहते हैं कि काफल को अपने ऊपर बेहद नाज भी है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है. कुमाऊंनी भाषा के एक लोक गीत में तो काफल अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, 'खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां. इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए.'
काफल के पीछ है एक मार्मिक कहानी
हालांकि इन लाल-लाल काफलों से जुड़ी एक मार्मिक कहानी बहुत कम ही लोगों को पता होगी. कहा जाता है कि उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला रहती थी, जिसकी एक छोटी सी बेटी थी. दोनों एक दूसरे का सहारा थे. आमदनी के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा कुछ नहीं था, जिससे बमुश्किल उनका गुजारा चलता था.
गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते, महिला बेहद खुश हो जाती थी. उसे घर चलाने के लिए एक आय का जरिया मिल जाता था. इसलिए वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती, जिससे परिवार की मुश्किलें कुछ कम होतीं. एक बार महिला जंगल से एक टोकरी भरकर काफल तोड़ कर लाई.
उस वक्त सुबह का समय था और उसे जानवरों के लिए चारा लेने जाना था. इसलिए उसने इसके बाद शाम को काफल बाजार में बेचने का मन बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर कहा, 'मैं जंगल से चारा काट कर आ रही हूं. तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना. मैं जंगल से आकर तुझे भी काफल खाने को दूंगी, पर तब तक इन्हें मत खाना.'
मां की बात मानकर मासूम बच्ची उन काफलों की पहरेदारी करती रही. इस दौरान कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में लालच आया, पर मां की बात मानकर वह खुद पर काबू कर बैठे रही. इसके बाद दोपहर में जब उसकी मां घर आई तो उसने देखा कि काफल की टोकरी का एक तिहाई भाग कम था. मां ने देखा कि पास में ही उसकी बेटी सो रही है.
सुबह से ही काम पर लगी मां को ये देखकर बेहद गुस्सा आ गया. उसे लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं. इससे गुस्से में उसने घास का गट्ठर एक ओर फेंका और सोती हुई बेटी की पीठ पर मुट्ठी से जोरदार प्रहार किया. नींद में होने के कारण छोटी बच्ची अचेत अवस्था में थी और मां का प्रहार उस पर इतना तेज लगा कि वह बेसुध हो गई.
बेटी की हालत बिगड़ते देख मां ने उसे खूब हिलाया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. मां अपनी औलाद की इस तरह मौत पर वहीं बैठकर रोती रही. उधर, शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई. जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए. अब मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमे से गुजर गई.
चैत के महीने में चिड़िया कहती है-काफल पाको मैं नि चाख्यो
कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में 'काफल पाको मैं नि चाख्यो' कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे.. फिर एक दूसरी चिड़िया गाते हुए उड़ती है 'पूरे हैं बेटी, पूरे हैं'..
ये कहानी जितनी मार्मिक है, उतनी ही उत्तरखंड में काफल की अहमियत को भी बयान करती है. आज भी गर्मी के मौसम में कई परिवार इसे जंगल से तोड़कर बेचने के बाद अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करते हैं.
छोटा गुठली युक्त बेरी जैसा ये फल गुच्छों में आता है और पकने पर बेहद लाल हो जाता है, तभी इसे खाया जाता है. वहीं ये पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है. इसकी छाल जहां विभिन्न औषधियों में प्रयोग होती है.
काफल से होता है कई चीजों का इलाज
आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है. साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह रामबाण बताया गया है. आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. के.एस. सोनी ने आईपीएन को बताया कि इसके साथ ही विभिन्न शोध इसके फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के होने की पुष्टि करते हैं, जिनसे शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव कम होता है और दिल सहित कैंसर एवं स्ट्रोक के होने की संभावना कम हो जाती है.
खास बात है कि इतनी उपयोगिता के बावजूद काफल बाहर के लोगों को खाने के लिए नहीं मिल पाता. दरअसल, काफल ज्यादा देर तक रखने पर खाने योग्य नहीं रहता. यही वजह है उत्तराखंड के अन्य फल जहां आसानी से दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं, वहीं काफल खाने के लिए लोगों को देवभूमि ही आना पड़ता है.
बीते वर्षो में काफल की बागवानी के उपाय हुए हैं. अगर इसे व्यापक और सफलतापूर्वक किया जाए, तो न सिर्फ लोगों को ये पौष्टिक फल आसानी से खाने को मिलेगा, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता लोगों की आय का बड़ा जरिया भी बन सकती है.
इनपुट- IANS