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क्या है कुंभ पर्व का ज्योतिषीय दृष्टिकोण?

समुद्र मंथन की कथा में कहा गया है कि कुम्भ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है. अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे. देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर है इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुम्भ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है.

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समुद्र मंथन की कथा में कहा गया है कि कुम्भ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है. अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे. देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर है इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुम्भ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है.

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पौराणिक विश्लेषण से यह साफ है कि कुम्भ पर्व एवं गंगा नदी आपस में सम्बंधित हैं. गंगा प्रयाग में बहती हैं परन्तु नासिक में बहने वाली गोदावरी को भी गंगा कहा जाता है, इसे हम गोमती गंगा के नाम से भी पुकारते हैं.

शिप्रा नदी को काशी की उत्तरी गंगा से पहचाना जाता है. यहां पर गंगा गंगेश्वर की आराधना की जाती है. इस तथ्य को ब्रह्म पुराण एवं स्कंध पुराण के 2 श्लोकों के माध्यम से समझाया गया हैः
‘विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते उत्त्रे सापि विन्ध्यस्य भगीरत्यभिधीयते.’
‘एव मुक्त्वाद गता गंगा कलया वन संस्थिता गंगेश्वेरं तु यः पश्येत स्नात्वा शिप्राम्भासि प्रिये.’

ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुम्भ का पर्व 4 प्रकार से आयोजित किया जाता हैः

1. कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है.
‘पद्मिनी नायके मेषे कुम्भ राशि गते गुरोः. गंगा द्वारे भवेद योगः कुम्भ नामा तथोत्तमाः..’

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2. मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुम्भ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है.
‘मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ. अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके..’
एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुम्भ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है.

3. सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है और सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है.
‘सिंह राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ. गोदावर्या भवेत कुम्भों जायते खलु मुक्ति दः..’
‘मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ. उज्जियन्यां भवेत कुम्भः सदामुक्तिम प्रदायकः..’

प्रयाग की तरह ही नासिक और उज्जैन के लिए भी ज्योतिषीय विकल्प उपलब्ध हैं
‘कर्के गुरू स्तथा भानुचन्द्रश्चएन्द्रर्क्षगतस्था. गोदावर्या तदा कुम्भो जयातेSवनि मण्डले..’

4. अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुम्भ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है.
‘घरेसूरिः शशि सूर्य कुह्मंप दामोदरे यदा. धरायां च तदा कुम्भों जायते खलु मुक्तिभद:..’
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम्।।

कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्ष दायक कुम्भ उज्जैन में आयोजित होता है.

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पौराणिक ग्रंथों जैसे नारदीय पुराण (2/66/44), शिव पुराण (1/12/22/-23) एवं वाराह पुराण(1/71/47/48) और ब्रह्मा पुराण आदि में भी कुम्भ एवं अर्ध कुम्भ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है. कुम्भ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है. कहा जाता है कि हरिद्वार के बाद कुम्भ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है.

प्रयाग और हरिद्वार में मनाये जानें वाले कुम्भ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाये जाने वाले कुम्भ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है.

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