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कब और किसने शुरू की आस्था की ये यात्रा...

सावन के शुरू होते ही शिवभक्त गंगाजल भरने के लिए कंधों पर कांवड़ लेकर निकल पड़ते हैं और महादेव का अभिषेक करने. जानें यह आस्था की कतार कहां से शुरू हुई...

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कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा

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सावन में शिव आराधना का बड़ा महत्व है. इस दौरान जगह-जगह कांवड़ियों की लम्बी कतारें बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए दिखतीं है. क्या आप जानते हैं श्रद्धा से जुड़ी इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की? अगर नहीं, तो यहां जानें कांवड़ यात्रा से जुड़ी मन्यताओं के बारे में...

इस यात्रा को श्री राम ने शुरू किया:
ऐसा भी माना जाता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे. कहते हैं श्री राम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबाधाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था.

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श्रवण कुमार ने की थी कांवड़ की शुरुआत:
कुछ लोगों को मानना है कि पहली बार श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया. उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए. वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए. माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.

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माना जाता है रावण था पहला कांवड़िया:
पुराणों के अनुसार इस यात्रा शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी. मंथन से निकले विष को पीने की वजह से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया था और तब से वह नीलकंठ कहलाए. इसी के साथ विष का बुरा असर भी शिव पर पड़ा. विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने तप किया. इसके बाद दशानन कांवड़ में जल भरकर लाया और पुरा महादेव में शिवजी का जलाभिषेक किया. इसके बाद शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए. कहते हैं तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई.

परशुराम थे पहले कांवड़िया:
कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित 'पुरा महादेव' का जलाभिषेक किया था. वह शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाए थे. इस कथा के अनुसार आज भी लोग गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर पुरा महादेव का अभिषेक करते हैं. अब गढ़मुक्तेश्वर को ब्रजघाट के नाम से जाना जाता है.

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जब देवताओं ने किया शिव का जलाभिषेक:
यह भी माना जाता है कि समुद्र मंथन में विष के असर को कम करने के लिए शिवजी ठंडे चंद्रमा को अपने मस्तक पर सुशोभित किया था. फिर सभी देवताओं ने भोलेनाथ को गंगाजल चढ़ाया. तब से सावन में कांवड़ यात्रा शुरू हो गई.

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