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सुबह हथेलियों के दर्शन करने के पीछे क्या है मान्यता...

ऐसा कहा जाता है कि सवेरे जगने के बाद अपने दोनों हथेलियों के दर्शन करना चाहिए. इससे दशा सुधरती है और सौभाग्य की प्राप्त‍ि होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि इसके पीछे कौन-सी मान्यता काम करती है?

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ऐसा कहा जाता है कि सवेरे जगने के बाद अपने दोनों हथेलियों के दर्शन करना चाहिए. इससे दशा सुधरती है और सौभाग्य की प्राप्त‍ि होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि इसके पीछे कौन-सी मान्यता काम करती है?

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दरअसल, हर इंसान चाहता है कि जब वह आंखें खोले, एक नए दिन की शुरुआत करे, तो उसके मन में आशा और उत्साह का संचार हो. हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथों में ब्रह्मा, लक्ष्मी और सरस्वती, तीनों का वास होता है. 'आचारप्रदीप' के एक श्लोक में कहा गया है:

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थ‍ितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।
(गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशि‍त ‘नित्‍यकर्म पूजाप्रकाश’ के अनुसार)

इस श्‍लोक का एक अन्‍य पाठ भी प्रचलित है, जो इस तरह है:
ऊं कराग्रे वसते लक्ष्‍मी: करमध्‍ये सरस्‍वती।
करमूले च गोविंद: प्रभाते कुरुदर्शनम्।।

इसका मतलब है, 'हथेली के सबसे आगे के भाग में लक्ष्मीजी, बीच के भाग में सरस्वतीजी और मूल भाग में ब्रह्माजी निवास करते हैं. इसलिए सुबह दोनों हथेलियों के दर्शन करना करना चाहिए.'

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि दोनों हाथों में कुछ 'तीर्थ' भी होते हैं. चारों उंगलियों के सबसे आगे के भाग में 'देवतीर्थ', तर्जनी के मूल भाग में 'पितृतीर्थ', कनिष्ठा के मूल भाग में 'प्रजापतितीर्थ' और अंगूठे के मूल भाग में 'ब्रह्मतीर्थ' माना जाता है. इसी तरह दाहिने हाथ के बीच में 'अग्न‍ितीर्थ' और बाएं हाथ के बीच में 'सोमतीर्थ' और उंगलियों के सभी पोरों और संधि‍यों में 'ऋषि‍तीर्थ' है. इनका दर्शन भी कल्याणकारी माना गया है.

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जब व्यक्त‍ि पूरे विश्वास के साथ अपने हाथों को देखता है, तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसके शुभ कर्मों में देवता भी सहायक होंगे. जब वह अपने हाथों पर भरोसा करके सकारात्मक कदम उठाएगा, तो भाग्य भी उसका साथ देगा. सुबह हाथों के दर्शन के पीछे यही मान्यता काम करती है.

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