'मां मुंबा तेरी सदा ही जय हो...' यही कहता है मुंबई नगरी का हर भक्त. ऐसा हो भी क्यों नहीं, मुंबई में भूलेश्वर में स्थित मां मुंबा के नाम पर ही इस नगर का नाम पड़ा है. मां के भव्य रूप के बीच मंदिर में 6 बार होने वाली आरती का गवाह हर कोई बनना चाहता है.
ऊंचे आसमान में इठलाती है पताका. मंदिर करता है मां की महिमा का गुणगान. सच्चे दरबार में उमड़ती है भक्तों की भीड़ और भक्त यहां करते हैं माता का बखान. श्वेत चांदनी से धवल है माता की कीर्ति. संगमरमर की दीवारों से घिरा है देवी का स्थान. इस मंदिर में आने के बाद मां की मूरत को भक्त बस निहारते रह जाते हैं. श्रृंगार में मां का भव्य रुप भक्तों को हैरान कर देता है. उनको अपनी ओर आकर्षित करता है और फिर बरबस ही झुक जाता है मां के आगे सिर.
मां मुंबा का दरबार एकदम निराला है. मुंबई के भूलेश्वर में स्थित माता मुंबा का एक नाम महाअंबा भी है. कहते हैं कि मुंबई पर मां का आशीर्वाद हमेशा रहता है. मुंबई का नाम ही मराठी में 'मुंबा आई' यानी मुंबा माता के नाम से निकला है.
मुंबा देवी की महिमा ही कुछ ऐसी है. चाहे राजा हो या रंक, देवता हों या मनुष्य, मां सब पर अपनी समान कृपा बरसाती हैं. यही वजह है कि मां के दरबार में मन्नत मांगने का तरीका भी बेहद अनूठा है. चार सौ साल पुराने इस मंदिर में सिक्के मां तक पहुंचाते हैं भक्तों की गुहार. सुनने में यह बात थोड़ी अजीब लगती है, क्योंकि यहां फल, फूल, नारियल, चुनरी- ये सभी पूजन सामग्री मां को अर्पित की जाती है, लेकिन इसके साथ ही इस मंदिर में सिक्कों का खास महत्व होता है.
एक तरफ जहां मुराद मांगने का तरीका बेहद अनूठा है, वहीं पूर्ण श्रृंगार में मां अंबा का रूप देखते ही बनता है. सिंदूरी रंग में रंगे चांदी के मुकुट से सुशोभित और बेहद आकर्षक आभूषणों से सजी मां की प्रतिमा को देखकर भक्त खिंचे चले आते हैं. इस रूप को देखकर भक्तों की आंखें पलकें झंपकाना भूल जाती हैं.
मां अंबा का रूप जितना भव्य है, उतना ही महत्व मां के दरबार में होने वाली आरती का भी है. मां के इस दरबार में 6 बार आरती का विधान है, जिसकी शुरुआत सुबह 6.30 बजे होती है. इससे पहले मां का भव्य श्रृंगार कर उन्हें आरती के लिए तैयार किया जाता है.
वैसे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ हर रोज उमड़ती है, लेकिन मंगलवार को यहां लोगों का सैलाब उमड़ आता है. श्रद्धालुओं में ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नत कभी अधूरी नहीं रहती है. देर-सबेर मां हर भक्त की मुराद सुनती है. यही वजह है कि यहां मुंबई से ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे कोनों से भी भक्त उमड़ते हैं और मां के आगे शीश झुकाते हैं.
मां मुंबा रावण के मामा मारीच की कुलदेवी हैं. लंका युद्ध के बाद जब वहां से मां का विसर्जन हुआ, तब मुंबई के समंदर में मां को जगह मिली. कहते हैं कि तब समंदर किनारे रहने वाले मछुआरों ने मां मुंबा को समुद्र से निकालकर बोरीबंदर में उनकी स्थापना की. यही वजह है कि मां की मछुआरों पर विशेष कृपा रहती है. बाद में मां के मंदिर को बोरीबंदर से हटाकर जावेरी बाज़ार में स्थापित कर दिया गया.
यह मंदिर अपने मूल स्थान पर 1737 में बना था. ठीक उस स्थान पर, जहां आज विक्टोरिया टर्मिनस इमारत है. बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में मंदिर को मैरीन लाइन्स-पूर्व क्षेत्र में बाजार के बीच स्थापित किया. तब मंदिर के तीन ओर एक बड़ा तालाब था, जो अब पाट दिया गया है. इस मंदिर की भूमि पांडु सेठ ने दान में दी थी. मंदिर की देखरेख भी उन्हीं का परिवार करता था. बाद में मुंबई हाईकोर्ट के आदेशानुसार मंदिर के न्यास की स्थापना की गई. अब भी वही मंदिर-न्यास यहां की देख-रेख करता है.
मां के दरबार में मुंबा देवी के अलावा जगदंबा और अन्नपूर्णा की मूर्तियां भी स्थापित हैं. कहते हैं कि यहां वैसे तो हर तरह की मान्यताएं पूरी होती हैं, लेकिन शादी-विवाह की अड़चनें यहां आने के साथ ही दूर हो जाती हैं.