एक तरफ महाकुंभ का आयोजन और दूसरी तरफ दिल्ली का चुनाव और इनके बीच जिक्र है यमुना नदी का. जहां प्रयागराज में यमुना नदी का महत्व संगम से है तो वहीं दिल्ली में यह नदी चुनावी मुद्दा बनी गुई है.पुराणों में यमुना नदी को गंगा के ही बराबर महत्व प्राप्त है. इसका अंदाजा इससे भी लगाया जाना चाहिए, सनातन परंपरा में जिन चार धामों का वर्णन है, उनमें से यमुनोत्री एक पवित्र और महत्वपूर्ण धाम के रूप में शामिल है. यही यमुनोत्री यमुना नदी का उद्गम स्थल है और यहां के मंदिर में देवी के रूप में उनकी पूजा की जाती है.
यमुना का पौराणिक महत्व
यमुना पौराणिक महत्व की नदी है और कई विवरणों में इसे गंगा से भी प्राचीन माना गया है. हालांकि यमुना नदी की पवित्रता और उसके निर्मल जल की मान्यता द्वापर युग में तब अधिक रही है, जब श्रीकृष्ण ने इस नदी को अपनी लीलाओं का साक्षी बनाया. कहते हैं भाद्रपाद मास की अष्टमी को श्रीकृष्ण का कंस कारागर में जन्म हुआ. अपने पुत्र को बचाने के लिए वसुदेव जी ने नवजात को यमुना पारकर अपने मित्र नंद के घर छोड़ आने का फैसला किया.
श्रीकृष्ण की सुरक्षा में यमुना की भूमिका
तेज बारिश और तूफान वाली रात थी. यमुना में भी बाढ़ आई हुई थी. वसुदेव जी उसी बाढ़ भरी नदी में उतर गए, लेकिन धीरे-धीरे पानी उनकी गर्दन तक आ गया. कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने तब डलिया से अपने पैर नीचे लटका दिए और यमुना ने उनके चरण स्पर्श किए, इसके बाद नदी ने वसुदेव जी को रास्ता दे दिया और वह सकुशल गोकुल पहुंच गए. यमुना नदी, कालिंदी नाम से श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक हैं.
कृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही है यमुना
यमुना श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही है. वह इसके किनारे बसे नगर में जन्म लेते हैं, इसके किनारे बसे वनों में पले-खेले, जिन भी गांवों से होते हुए यमुना नदी का जल गया वहां-वहां कृष्ण की मौजूदगी रही. गोकुल, वृंदावन, बरसाना, गोवर्धन जैसे तमाम ऐसे स्थल हैं जो आज पौराणिक महत्व के हैं और श्रीकृष्ण के जीवन-दर्शन के साक्षी हैं. इसी यमुना का प्रयागराज में गंगाजी के साथ मिलन होता है और यह स्थल तीर्थराज के नाम से जाना जाता है.
यमुना नदी में कालिया नाग का मान-मर्दन
यमुना श्रीकृष्ण की एक और खास लीला की साक्षी रही है, वह है कालिया नाग का मान मर्दन. दरअसल कंस के कहने पर एक कालिया नाग अपने विषैले परिवार के साथ गोकुल के पास बहती यमुना में आकर रहने लगा था. उसके विष के कारण कई ग्वालों की गायों की मौत हो गई थी और इसे पीकर ग्रामीण भी बीमार पड़ रहे थे. एक दिन सभी ग्वाले इस समस्या को लेकर नंद बाबा के पास विचार-विमर्श के लिए आए. यहीं पास में कृष्ण भी अपने सखाओं के साथ मौजूद थे. समस्या का कोई हल नहीं निकला और सभी लौट गए.
अगले दिन श्रीकृष्ण गेंद खेलने यमुना तट पर जुटे. उन्होंने इसी बीच जानबूझ कर अपने गोप सखा मनसुखा की गेंद यमुना में फेंक दी. मनसुखा कृष्ण से अपनी गेंद वापस लाने की जिद करने लगा. कृष्ण को इसी मौके की तलाश थी. वह यमुना में कूद गए. श्रीमद भागवत पुराण में इस कथा का वर्णन है. जल के तल में जाकर श्रीकृष्ण कालिया नाग से युद्ध करते हैं और उसे पराजित करते हैं. तब कालिया नाग उनसे प्राणों की भीख मांगता है. श्रीकृष्ण ने उसे यमुना नदी से दूर जाने का आदेश देकर छोड़ दिया. इसी के बाद वह कृष्ण के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए उन्हें अपने फन पर बिठा कर यमुना के जल से ऊपर ले आया.
श्रीकृष्ण ने उसके फन पर वंशी बजाई और आनंद तांडव नृत्य किया. कहते हैं कि कृष्ण के नृत्य के कारण ही कालिया के फन पर दो पैरों के निशान बन गए. यह निशान हर नाग के फन पर देखे जा सकते हैं. कालिया नाग के यमुना नदी से दूर जाने के बाद श्रीकृष्ण ने स्वर्ग से अमृत मंगवाया और यमुना के जल को पवित्र किया.
कालिया नाग के मान मर्दन का वर्णन भक्त कवि सूरदास ने सूरसागर में बहुत ही खूबसूरती से किया है. इसमें उन्होंने अक्षरों की पुनरावृत्ति से सुंदर रस पैदा किया है.
तांडव गति मुंडन पै नाचत गिरिधारी,
पं पं पं पग पटकत्,
फं फं फं फननि परत,
बिं बिं बिं विनति करत,
नाग वधु हारी।।
शशिक शशिक शनकादिक्
नं नं नं नारद मुनि,
मं मं मं महादेव,
बं बं बं बलिहारि ,
विविध विविध विधाधर,
दं दं दं देव सकल,
गं गं गं गुनि गंधर्व नाचत दे तारि,
सूरदास प्रभु की वाणी
किं किं किनहु ना जानि
चं चं चं चरण परत,
निर्भय कियो काली,
तांडव गति मुंडन पे नाचत गिरिधारी,
अमृत की मान्यता के कारण वृंदावन में भी लगता है कुंभ
अपनी किताब (भारत में कुंभ) में पत्रकार व लेखक धनंजय चोपड़ा ने वृंदावन कुंभ मेले का जिक्र भी किया है. वह लिखते हैं कि,'वृंदावन कुंभ की परंपरा प्राचीन है, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप हरिद्वार कुंभ में शैव संन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच होने वाले संघर्ष से जुड़ा है. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 13 अप्रैल, सन् 1760 को हुए ऐसे ही एक खूनी संघर्ष के बाद बैरागी संत-महात्माओं ने तय किया कि हरिद्वार कुंभ में आने से पहले वृंदावन में एकत्र होंगे, संत-समागम करेंगे और फिर एक साथ हरिद्वार कुंभ मेले में प्रवेश करेंगे. इसी पहल ने वृंदावन कुंभ मेले की रूपरेखा तय कर दी.'
क्या है भागवत पुराण में दर्ज मान्यता
भागवत पुराण के अनुसार, पक्षीराज गरुड़ अमृत कलश लेकर उड़ते हुए यहां पहुंचे और यमुना तट पर स्थित कदंब के वृक्ष पर कलश रखकर विश्राम करने लगे. इस दौरान कुछ बूंदे छलककर यहां गिर गईं. जहां यह कदंब वृक्ष स्थित है, उसके आस-पास ही कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.अमृत की बूंदों ने इस वृक्ष को अमर बना दिया. साधु-संत बताते हैं कि इसी स्थान पर कदंब के पेड़ के पास एक कुंड था, जहां कालिया नाग रहता था. उसके विष के प्रभाव से आस-पास के सभी पेड़-पौधे मुरझा गए थे और वातावरण भी दूषित हो गया था.
श्रीकृष्ण ने स्वर्ग से मंगाया था अमृत
जब श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का दमन करके उसे यहां भगाया तब उसके विष के प्रभाव को समाप्त करने के लिए स्वर्ग से अमृत लाने का आदेश दिया था और यमुना के जल को शुद्ध कराया था. इस कहानी से यमुना नदी का महत्व और बढ़ जाता है और यह मान्यता भी यहां कुंभ मेले के आयोजन का आधार बनती है.
हिमालय के कलिंद पर्वत से निकली है यमुना
हिमालय की कलिंद पर्वत शृंखला से निकलने वाली यमुना नदी का एक नाम कालिंदी भी है. पुराणों में इसे सूर्य देव की पुत्री और यम की बहन कहा गया है. कहते हैं कि पहले उनका जन्म मानवी रूप में हुआ था, लेकिन बाद की परिस्थितियों के कारण वह नदी में परिवर्तित हो गई थीं. ऋग्वेद के संवाद सूक्त में यमुना का जिक्र यम के साथ किया गया है, जहां उनका असली नाम यमी बताया गया है. ऋग्वेद के संवाद सूक्त में यम और उनकी बहन यमुना (यमी) के बीच होने वाली बातचीत भी दर्ज है. ये संवाद सूक्त भारतीय व्यवस्था में परिवार के मूल्यों को बताता है और इसके साथ ही भाई-बहन के बीच रिश्तों की जो पवित्रता होती है उसे भी अंडरलाइन भी करता है.
ऋग्वेद में है यमुना का वर्णन
ऋग्वेद में यम-यमी की इस कथा को लेकर वेद पंडितों में कई तरह के विरोधाभास भी हैं. असल में एक बार यमराज, यमी के घर जाते हैं. यमी और यम के पिता विवस्वान यानी सूर्यदेव ही हैं, लेकिन अपने भाई से हमेशा अलग रही यमी उन्हें प्रेमी मान लेती है. जब यम, यमी के घर पहुंचते हैं तो वह उनसे अपने प्रेम का प्रस्ताव रखती है. तब यम उसे बताते हैं कि हम एक ही पिता और एक ही मां की संतानें हैं. तुम्हारी माता संध्या ही मेरी भी माता हैं. इसलिए आप मुझसे प्रेम का प्रस्ताव मत रखिए. यम की बात सुनकर यमी को बहुत निराशा होती है और वह पश्चाताप करने लगती हैं. ऋग्वेद में यम के इस निर्णय को बहुत ही महानता के साथ देखा गया है और यही कहानी भाई-बहन के बीच संबंधों की मर्यादा का उदाहरण भी बनती है.
ओ चित्तसखायं सख्या ववृत्यां तिरः पुरू चिदर्णवं जगन्वान्।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अधि क्षमि प्रतरं दीध्यानः।। 1 ।।
न ते सखा सख्यं वष्ट्येतत्सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवासि।
महस्पुत्रासो असुरस्य वीरा दिवो धर्तार उर्विया परिख्यन्।।
उशन्ति घा ते अमृतास एतदेकस्य चित्त्यजसं मर्त्यस्य।
नि ते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः पतिस्तन्वं विविश्याः।।
न यत्पुरा चकृमा कद्ध नूनमृता वदन्तो अनृतं रपेम।
गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा सा नो नाभिः परमं जामि तन्नौ।।
यम और यमी कि इस कथा को पुराणों में भी अलग-अलग संदर्भों में बताया गया है. विष्णुपुराण के मुताबिक, यम एक दिन अपनी बहन यमी के घर पहुंचे. भागवत कथा के अनुसार जिसके दरवाजे यम (यानी मृत्यु) खुद पहुंच जाए तो वह कहां खुश होता है, लेकिन इसके उलट यमी अपने भाई को देखकर बहुत प्रसन्न हुई. यमी ने यम को बहुत आदर से आसन दिया. उसे पकवान बनाकर खिलाए और उसे भोजन आदि से बहुत संतुष्ट किया.
पहली बार अपनी ऐसी आवभगत देखकर यम बहुत प्रसन्न हुए और यमी से वर मांगने के लिए कहा. यमी ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि कहा कि जो भी बहन आज के दिन अपने भाई को इस तरह भोजन कराए, उसका अपने घर में स्वागत करे उसे काल का डर कभी न लगे. यम ने भी कहा जो भी भाई, आज के दिन अपनी बहन के घर जाकर उसे आदर-सत्कार देंगे और उसका ख्याल रखेंगे उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं लगेगा.
ऐसे नदी में बदल गई यमुना
पुराणों में यमुना नदी के बनने की कहानी भी यम-यमी के इस मिलन से ही निकलती दिखती है. जब यम ने यमी को बताया कि वह उसका भाई है और इसलिए वह यमी का प्रेम नहीं अपना सकता तो यमी को बहुत दुख होता है. वह पछतावा करने लगती है. धीरे-धीरे उसकी देह गलकर जल में बदलती जाती है और इसी जल की धारा से यमुना नदी निकलती है. यमुना नदी की प्राचीनता गंगा से बहुत पुरानी है. यम-यमी की इस कथा के बाद दीपावली के बाद पड़ने वाली यम द्वितीया के दिन का काफी महत्व है. इस दिन भाई-बहन के एक साथ यमुना स्नान का महत्व है और नदी किनारे ही कुछ भोजन बनाकर खिलाने की मान्यता है. उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में ये परंपरा चली आ रही है.
ब्रज संस्कृति की जननी है यमुना नदी
भुवनभास्कर सूर्य इसके पिता, मृत्यु के देवता यम इसके भाई और भगवान श्री कृष्ण इसके पति स्वीकार्य किये गये हैं. जहां भगवान श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते हैं, वहीं यमुना इसकी जननी मानी जाती है. इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है. अतः ब्रज में इसे यमुना मैया कहते हैं. ब्रह्म पुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए विवरण प्रस्तुत किया है - "जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्ष्णों से सच्चिदनंद स्वरूप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका ब्रह्म रूप से गायन किया है, वही परमतत्व साक्षात् यमुना है. गौड़िय विद्वान श्रीरूप गोस्वामी ने यमुना को साक्षात् चिदानंदमयी बताया है. चिदानंदमयी का अर्थ है, जिसके दर्शन करने भर से आत्मा को सच्चा आनंद प्राप्त होता है. यमुना नदी को गंगा के ही समान माता का दर्जा मिला हुआ है.
जिस तरह से स्नान, स्तुति और आचमन के लिए गंगा जल का महत्व है, ठीक उसी तरह यमुना नदी भी अपना खास महत्व रखती है. गंगा की ही तरह यह भी तीर्थों की नगरी का केंद्र रही है. इसके अलावा विष्णु अवतार श्रीकृष्ण की लीलाओं में सहयोगी-साक्षी रहने के कारण इसका भी जल हरि चरणामृत के समान माना गया है. पुराणों में इसे कई स्थानों पर वंदनीय कहा गया है.
“नमामि यमुनां देवीं सुरासुरनमस्कृताम्।
पापहारिणीं पुण्यां लोकानां त्राणकारिणीम्।"
स्कंदपुराण में यमुना की वंदना करते हुए कहा गया है कि, यमुना में स्नान करने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और सभी पाप समाप्त हो जाते हैं.
"कालिंद्या वरदा गंगा त्रिपथगा विष्णुपादवी।
स्नातं यत्र हरिः स्वायं धर्मं तत्र करोति सः।"
वहीं पद्मपुराण में भी इस नदी को पाप नाशिनी, शोक हारिणी और कल्याणी कहा गया है. यमुना के जल का संपर्क व्यक्ति के सभी दुःखों को समाप्त करता है। इसे स्मरण मात्र से भी पापों का नाश होता है.
"यमुना जगत् त्राण कारणं कलिमलापहम्।
स्नानमात्रेण पापघ्नीं नमामि हरिणीं शुभाम्।"
“यमुनाजलसम्पर्कात् यो भवेद्दुःखमोक्षणम्।
स्मरन्ति यमुनां भक्त्या पापानामाशु नाशनम्।”
स्कंदपुराण में ही एक स्थान पर यमुना को गंगा से भी अधिक पवित्र माना गया है. इसमें कहा गया है कि गंगा के दर्शन से पाप नष्ट होते हैं, स्पर्श से पातक समाप्त होते हैं, लेकिन यमुना में स्नान से तो सीधा मोक्ष की प्राप्ति होती है.
“गङ्गायां दर्शनात् पापं स्पर्शनात् पातकं भवेत्।
यमुनायां तु यत्स्नानं मुक्तिः साक्षात् भवेद् ध्रुवम्।”
महाभारत में भी हुआ है उल्लेख
महाभारत के वनपर्व में यमुना को पवित्रता की देवी और समस्त जीवों के उद्धार का स्रोत कहा गया है. यह भी उल्लेख है कि यमुना के तट पर तपस्या करने वाले ऋषियों को महान पुण्य की प्राप्ति हुई. यमुना नदी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसके महत्व को ऐसे समझा जा सकता है कि पहाड़ों में बसे चार धामों से एक प्रमुख धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल है. जिसे यमुनोत्री धाम कहा जाता है.
यह इसलिए भी है, क्योंकि गंगा के ही समान यमुना भी भारतीय जीवन पद्धति की जीवन रेखा है. इसके किनारे हरियाणा के प्रमुख शहर हैं. देश की राजधानी दिल्ली इसके ही जल से सिंचित है. उत्तर प्रदेश के इतिहास का प्रमुख शहर आगरा जहां किला और ताजमहल हैं, वह इसके किनारे ही स्थित हैं.
यही वजह है कि यमुना जब प्रयागराज में गंगा से मिलती है तो इस स्थान यानी संगम क्षेत्र के महत्व को कई गुना बढ़ा देती है. तब यह एक स्थान उन दो नदियों का कृपा पात्र बन जाता है, जिनका अपना अलग-अलग महत्व है, लेकिन दोनों के महत्व का लाभ एक साथ मिल जाता है. महाकुंभ में जब संगम के जल में डुबकी लगाई जाती है तो आस्था कहती है कि गंगा-यमुना का दोनों का मिला हुआ यह जल उन्हीं ईश्वरीय तत्व के और निकट ले जाएगा. उनकी काया को शुद्ध कर देगा और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिला देगा. इसी के साथ घाटों पर हर-हर गंगे, जय यमुना मैया का स्वर गूंजता रहता है.